शिखर पर पहुंच कर नीचे उतरने का क्रम प्रारंभ होता है। मंजिल पर पहुंच वापसी का सफर शुरू होता है। प्रेमी युगल भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचने के बाद एक दूसरे से विरक्ति का भाव महसूस करते हैं। चरम के बाद उन्नयन का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। आवश्यक है कि आप कभी चरम को प्राप्त ना करें, किसी ऊंचाई को अपना शिखर मान लें, कोई आखिरी मंजिल ना बनाए। शिखर को एक पड़ाव समझें, मंजिल को सफर का एक सराय और प्रेम को सतत बना कर क्षणिक चरमोत्कर्ष और विरक्ति के ऊपर ले
जाएं। पतन वापसी और विरक्ति के भाव को विजित करने का यही मूल मंत्र है।
#चरैवेति
1 comment:
इसीलिए हम ऊंचाई पर नही पहुंचना चाहते है, क्योंकि एक बार ऊंचाई के शिखर पर पहुंच गए तो सिर्फ नीचे उतरना है।
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