Saturday, February 10, 2024

चेतना की उर्वर भूमि

लेखक क्या है? एक कवि क्या है? एक उर्वर जमीन। जिसपर जैसे ही कोई विचार रूपी बीज गिरता है, वो समाहित कर लेता है उसे अपने आप में। अपने दर्शन की खाद, लेखनी की स्याही वाले जल और अपने अनुभवों के सूर्यातप से उस विचार बीज को अंकुरित, पुष्पित और प्रस्फुटित करता है। फिर वो विचार बीज पहले एक छोटा पौधा और बाद में एक वृक्ष बन जाता है। वैसा वृक्ष जो फिर स्वयं फल उत्पन्न करता है जिसका आस्वाद समस्त जीव कर तृप्त होते हैं। फल सिर्फ जीवों को तृप्त नहीं करते बल्कि अपने अंदर एक और बीज संरक्षित करते हैं और कहीं और किसी और उर्वर भूमि को पाकर पल्लवित हो उठता है, एक नए वृक्ष को जन्म देता है और विचारों के अनवरत प्रवाह का यह चक्र चलता रहता है। 

किसी भी सभ्यता के विचारों के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार का यह चक्र अनवरत चलता रहे इसके लिए आवश्यक है कि लेखकों और कवियों की यह उर्वर धरती बनी रहे। उस उर्वर धरा की नमी भौतिक आवश्यकतों के ताप से सूख ना जाए। उस उर्वर भूमि पर बाजारवाद का मॉल ना खोल दिया जाय जहां गिरे बीज की जगह डस्टबिन होती है। ना ही उस उर्वर भूमि पर समाज की गंदगी गिरा गिरा कर उसे नाला बना दिया जाय कि जहां सिर्फ विषैले पादप उत्पन्न हों।

उस उर्वर भूमि को बचाने की जिम्मेदारी पूरे समाज की तो है ही, यह जिम्मेदारी व्यक्तिगत भी है। अपनी चेतना की समस्त भूमि पर भौतिकता की अट्टालिका खड़ी ना करें। कुछ उर्वर भूमि को बचा कर रखें  बाह्य अतिक्रमण से। फिर देखिए आपके अंदर भी वो संवेदनशीलता की नमी रहेगी और आप भी विचारों के प्रसार की वो कड़ी बनेंगे जिसने पूरी मानवता की प्रगति जोड़ रखी है।

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