Monday, March 18, 2024

देहाती फूल और कांटे

फूल और कांटे सुन कर आपको भले अजय देवगण का बाइक वाला स्टंट याद आता हो, या अगर बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से इतर वाला आपका टेस्ट है तो शायद निराला की अबे सुन बे गुलाब याद आता हो या शायद गुलाब का कोई पौधा याद आ जाता है, मुझे तो यह वाला पौधा याद याता है। 

ये वाला इसीलिए कि इसका नाम मुझे पता नहीं। कभी पूछा नहीं किसी से, शायद किसी से इसका नाम भी नहीं रखा। नामवर यह पौधा कभी नहीं रहा क्योंकि इसने उसने किसी की मंहगी खाद नहीं ली और न ही किसी ने इसको पाइप से पानी पिलाया। किसी के अचकन की जेब में टांक दिए जाने का खूबसूरत ख्वाब भी इसने कभी नहीं देखा।

हां लेकिन गांव के बच्चों ने इसकी फूल की पंखुड़ी को होठों से लगा कर सीटियां खूब बजाई हैं। वसंत में खिलने वाले फूलों में इसका नाम शुमार तक नहीं किया गया है, शुमार भी तब हो जब नाम रखा जाय। लेकिन हमारे बचपन का अभिन्न अंग रहा है यह पौधा। हमारे गिल्ली डंडा के मैदानों का प्रहरी और हमारा दर्शक। पतंग लूटने के लिए बच्चों को आसमान की तरफ निगाह करके दौड़ते देख कर यही उनके पांवों के नीचे आकर उनको सचेत करता कि बच्चे थोड़ा रास्ता देख कर चलो। बहती पछुआ हवाओं के साथ इसके उड़ते पंखुड़ी लोगों को याद दिलाते कि जीवन में वसंत भले ही चला गया हो, गर्म हवाओं में भी खुशबू और नरमी फैलाने का प्रयास रुकना नहीं चाहिए। और इसके फलों के अंदर छिपे अनगिनत बीज सूख करबाइसे बिखरते मानों दादी मां के आंचल में बंधे पैसे बिखर रहे हों। 

आज बहुत दिनों बाद नजर आए तुम। आगे क्या कहूं, क्या पूछूं। आज तक नाम भी तो नहीं बताया तुमने!!! 

1 comment:

RAJ said...

सत्यनाशी पौधे , इसका नाम है