Friday, May 28, 2021

Disaster management lessons from Ants

Ants are one of the most fascinating creatures we have around us. Their hardwork and persistence are stuff of legends. They can teach a lot to us humans when it comes to life lessons.

After a downpour due to Yass cyclone for around 2 days, life went haywire for most of humans in eastern part of India. Imagine what would have happened to the ants. Total destruction of their homes and colonies. It's must have felt like D day for them. What happened to them is not important, it's important how they dealt with it. Within 12 hours, they rebulit their homes, colonies, highways and rescue work is on till business as usual is stored.
I was fascinated with the details with the structure they have bulit. Though my camera might not have captured every minute details, what I could see were structure similar to highways, underpass, bridge, bunkers, makeshift colonies, temporary granaries and what not. All these were built overnight after rains stopped. Around 5 pm yesterday. 

‌We don't need University education to learn these. Mother nature can teach us every thing. Wish we had more time and attention to attend these classes.

Tuesday, May 25, 2021

बौद्ध धर्म और इसके उद्भव के आर्थिक कारक

उत्तर वैदिक काल तक आते आते सभ्यता प्रारंभिक वैदिक काल की उलट कृषि व्यवस्था आधारित हो गई थी। प्रारंभिक काल में जहां कृषि व्यवस्था पशुपालन और गोचारण आधारित थी, लोहे के आविष्कार के बाद गंगा यमुना के मैदान में फैले घने जंगलों को साफ कर कृषि योग्य बनाना आसान हो गया इसीलिए समाज की आर्थिक क्रियाएं कृषि के आसपास केंद्रित हो गई। 

कृषि के विकास के साथ साथ ही सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहा था। कृषि में उत्पादन करने वाले वैश्य और शूद्र वर्ग के पास धन का अधिशेष अधिक होने लगा। पुरोहित वर्ग और शासक वर्ग के पास इस अधिशेष को हथियाने के लिए संघर्ष बढ़ा। शासक वर्ग ने जहां करों के रूप में कृषक वर्ग से बाह्य आक्रमण से सुरक्षा के आश्वासन के बदले सशस्त्र सेना का गठन किया, वहीं पुरोहित वर्ग ने पारलौकिक मुक्ति और मोक्ष के बदले शासक और कृषि समुदाय से पूजा और अनुष्ठानों के रूप में अपना कर लेना शुरू किया।

शुरू शुरू में तो यह अनुष्ठान छोटे स्तर पर होते थे लेकिन उत्तरोत्तर अनुष्ठानों के आकार और संख्या में वृद्धि होने लगी। यज्ञ अब सामान्य यज्ञ न होकर अश्वमेध यज्ञ और पुत्रेष्टि यज्ञ और अनंत प्रकार के होने लगे। इन यज्ञों में पशु बलि की प्रथा ने विकराल रूप ले लिया। चूंकि कृषि की समस्त क्रियाएं पशुबल के बिना संभव नहीं थी, अत्यधिक पशुबलि के कारण कृषि क्रियाओं पर प्रभाव पड़ने लगा। एक तो वो पहले ही करों के बोझ से दबी थे, कृषि के लिए उपलब्ध पशुओं की संख्या में कमी ने उनकी समस्या दुगुनी कर दी। ऐसी वक्त में ही अनेक संप्रदायों का उद्भव हुआ जिन्होंने पशुबलि के नाम पर होने वाली हिंसा को अनुचित माना। इस बलि की प्रथा से सर्वाधिक प्रभावित कृषक और उत्पादक वर्ग था, इन संप्रदायों की लोकप्रियता कृषक और वैश्य समाज में बढ़ी। चूंकि यह वर्ग समाज में बहुमत में था, इसपर वर्चस्व बनाए रखने के लिए इन संप्रदायों का पुरोहित वर्ग से संघर्ष प्रारंभ हुआ। आगे चल कर कर शासक वर्गों जैसे मौर्य, हरयंक, नंद और शिशुनाग वंश के शासकों ने इन समुदायों को या तो वैचारिक समर्थन दे सुरक्षा प्रदान की या वे स्वयं इसके अनुयायी बने।

ऐसी मान्यता है कि उस काल में कुल पच्चीस से ज्यादा ऐसे संप्रदाय थे, जिनमें जैन संप्रदाय और बौद्ध संप्रदाय सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। यद्यपि बौद्ध धर्म और जैन धर्मों के उदय और प्रसार को आप वैदिक धर्म के विरुद्ध एक आध्यात्मिक आन्दोलन के रूप में देख सकते हैं, लेकिन मूल में इन आंदोलनों के कारण आर्थिक थे। कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था और पशुबलि के नकारात्मक आर्थिक प्रभावों ने हमें भगवान बुद्ध और महावीर जैन जैसे संत दिए।

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं। 

Saturday, May 22, 2021

वैक्सीन बनाने के लिए आम सुझाव

कोविड 19 के बीच मेरी दोपहर वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में आपका स्वागत है। सुबह वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैने आपको बताया था कि covid से लड़ने के लिए मैंने कितने ट्वीट किए, कितने विज्ञापन दिए ।लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि केवल ट्वीट और विज्ञापन से covid से लड़ना आसान नहीं है, इसलिए एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री के तौर पर मैं कुछ सुझाव भी दूंगा। Covid से लड़ने के लिए सबसे जरूरी है वैक्सीन। दिल्ली के हर आदमी के लिए हमें तीन करोड़ वैक्सीन चाहिए, वो भी जल्द से जल्द। हो सके तो मेरी अगली प्रेस कांफ्रेंस से पहले। इसके लिए मेरे चार सुझाव हैं केंद्र सरकार को।

पहला सुझाव : देसी वैक्सीन कोवैक्सीन का फॉर्मूला छीन कर दूसरी बाकी दूसरी कंपनी को दे दिया जाय। अगर सरकार को इसमें दिक्कत आ रही है तो मुझे कहे। मैं सतिंदर जैन को भेज कर भारत बायोटेक के दरवाजे के सामने धरना दिलवा दूंगा। देगा कैसे नहीं। उसके बाप का थोड़े है फॉर्मूला। हां उसी के बाप का है लेकिन उससे फॉर्मूला छीन कर उसको मैं अपने बाप का बना लूंगा। उसके बाद केंद्र सरकार सभी कंपनी को आदेश दे कि युद्ध स्तर पर वैक्सीन बनाना चालू करे। चौबीस घंटे में काम शुरू करे। उनको वैक्सीन बनाने के लिए जितनी जगह चाहिए, दिल्ली सरकार देगी। हमारे एमएलए ताहिर हुसैन की छत वैसे भी आजकल खाली है, राम लीला मैदान है वहां पर टेंट गाड़ कर वैक्सीन बना सकते हैं। मैंने इंटरनल सर्वे किया है कि अगर पूरे रामलीला मैदान में वैक्सीन बनाई जाय तो तीन दिन में हम पूरी दिल्ली के लिए वैक्सीन बना सकते हैं। यह सर्वे उसी कमिटी ने किया है जिसे हमको बताया था कि बुलेट ट्रेन का भाड़ा मुंबई से अहमदाबाद का पच्चतर हजार रुपए होगा।

मेरा दूसरा सुझाव : सारी विदेशी वैक्सीन को भारत में परमिशन दे दी जाय। चाहे कोई भी देश हो, सबको परमिशन दे दी जाय। जिनके पास वैक्सीन नहीं भी है उनको भी परमिशन दे दी जाय। जैसे केवल फाइजर की कंपनी को ही क्यों?  गाज़ा पट्टी वाली  कंपनी को भी परमिशन दी जाय। अरे इतने बड़े बड़े रॉकेट बना सकते हैं तो वैक्सीन भी बना ही लेंगे आज नहीं तो कल। अफगानिस्तान, घाना, क्यूबा सबकी कंपनी को परमिशन दी जाय। अगर परमिशन देने में दिक्कत है तो सरकार हमको कहे। मैं सिसोदिया को परमिशन मिनिस्ट्री में मंत्री बना दूंगा। वो और आतिशी मिल कर चौबीस घंटे में सबको परमिशन दे देंगे। 

मेरा तीसरा सुझाव : जितने भी कंपनी है उनसे केंद्र सरकार बात करे। प्रधानमंत्री खुद बात करे। अगर माननीय प्रधानमंत्री जी बात नहीं कर सकते, तो मुझे प्रधानमंत्री बना दें।वैसे भी मैं खाली ही बैठा हूं, कोई विभाग तो है नहीं मेरे पास। चौबीस घंटे के अंदर में सारी कंपनी वालों से बात कर लूंगा, और कंपनी वाले बाद में अपने बात से पलट ना जाएं इसीलिए मैं उनको बिना बताए मीटिंग लाइव टेलीकास्ट कर दूंगा। बाकी अगर कोई मीडिया  में उसपर डिबेट हुई तो राघव चड्ढा को डिबेट में भेज दूंगा। वो सब कुछ स्मूथ ली संभाल लेगा। 

मेरा चौथा सुझाव:  कुछ देश ऐसे हैं जिनके पास एक्स्ट्रा वैक्सीन है , उनसे वैक्सीन मांगने की जरूरत है। यह काम मेरा सोमनाथ भारती कर सकता है। इतने स्पैम ईमेल भेजेगा कि सब लोग चौबीस घंटे के अंदर अपनी सारी एक्स्ट्रा वैक्सीन हमको भेज देंगे। और किस देश ने कितनी वैक्सीन भेजी उसकी लिस्ट हम अपनी पार्टी की वेबसाइट पर डाल देंगे, क्योंकि ईमानदार सरकार। सिर्फ मांगने से अगर काम नहीं चले तो जितने भी विदेशी कंपनी है उनको भारत में वैक्सीन उत्पादन की छूट दी जाय। कंपनी खोलने के लिए जगह तो हम पहले ही दे चुके हैं, अगर उनको वैक्सीन कंपनी के लिए वैज्ञानिक और सीईओ चाहिए तो मैं अपने पुराने दोस्त योगेंद्र यादव से कंपनी का सीइओ बनने की दरख्वास्त करूंगा। वो सब काम कर सकते हैं, वैसे भी छब्बीस जनवरी की ट्रैक्टर रैली के बाद यादव जी अब कुछ नया करियर ट्राय करना चाहते हैं, किसान नेता वाले करियर से स्विच करने के लिए वो बहुत बेताब हैं। 

बाकी मेरी सुझाव मैं अपनी मैटिनी शो वाले प्रेस कांफ्रेंस में दूंगा। कोई गुस्ताखी हुई हो तो माफ करिएगा। अब हम जन वैक्सीन विधेयक के ड्राफ्ट पर काम करने जा रहे हैं। सीसु, अन्ना को फोन लगाओ तो जरा। 

Saturday, May 8, 2021

सुरंग पर काम जारी रखिए

जेल की सुरंग बनने में समय लगता है। आखिर जेल की दीवारें हैं,मोटी तो होंगी ही। ऊपर से आपके पास औजार भी नहीं होते। छुप छुपा कर ही सारा काम करना होता है। धीरे धीरे,लेकिन अनवरत। बिना शिकायत किए। आप किसी चीज की कमी का रोना नहीं रो सकते। कोई सुनेगा नहीं, अगर किसी ने आपके इरादों को भाप लिया तो आपका आधा अधूरा काम भी खतम। बस एक ही चीज की आशा। खुली हवा में फिर से सांस लेने का मौका। धूप को अपने चेहरे पर महसूस करने का सुख। जेल की चहारदीवारी से बाहर बेबस नहीं आशा भरे चेहरों में अपना एक चेहरा शामिल करने का सपना। हां सुरंग बनाते वक्त आने वाले वक्त को महसूस करना ही सुरंग बनाने के लिए ऊर्जा देता है। 
नब्बे के दशक आते आते पंचम दा को काम मिलना करीब करीब बंद हो चुका था। ना किसी नई फिल्म में काम मिलता था और न ही पुराने किसी दोस्त से कोई खास संपर्क बचा था। ऐसे वक्त में उनके हाथ में एक फिल्म आई, 1942 ए लव स्टोरी। ऐसे बुरे वक्त में उन्होंने "यह सफर बहुत है कठिन मगर " ,कुछ ना कहो" जैसे गीत बनाए। जिंदगी के ऐसे वक्त पर जब उनके लिए सब कुछ करीब करीब समाप्त हो चुका था, उनके लिए बहुत आसान था, हार मान के गुमनामी की मौत मरना। लेकिन उन्होंने अपने आप को इस गुमनामी की जेल से बाहर निकाला और जाते जाते खुद को अमरत्व प्रदान करने वाली धुनें बना कर चले गए।
यह सुरंग किसी भी रूप में हो सकता है। पंचम दा के लिए यह उनके अमर संगीत के रूप में था।
हम में हर कोई कभी न कभी किसी ऐसी स्थिति में होता है जब परिस्थितियों की ऊंची ऊंची दीवारों के बीच आपको लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा। ऐसे वक्त पर ही सुरंग बनाने का कार्य आपको लड़ने का साहस देता है । यही अदम्य विश्वास कि सारे रास्ते तब तक बंद नहीं होते जब तक आप रास्ता बनाने का साहस रखते हैं। यही अदम्य विश्वास है जिसने दशरथ मांझी के एक छोटे से हथौड़े से पूरा पहाड़ खोद दिया या एंडी डूफ्रेन ने साशंक की जेल से बाहर निकल कर जीहुतनेहो तक की दुर्गम यात्रा की। पांडव भी अगर लाक्षागृह में सुरंग न बनाते तो महाभारत का निर्णायक युद्ध लड़ने से पहले ही हार गए होते। सौरव गांगुली ने कोच ग्रेग चैपल से अपने मतभेद के बाद टीम में वापसी के लिए जो संघर्ष किया वो भी जेल में सुरंग बनाने जैसा ही है।

मतलब यह कि हिम्मत हारना दुनिया का सबसे आसान विकल्प है। कठिन से कठिन असंभव सी परिस्थितियों में भी यह विश्वास बनाए रखना है कि स्थितियों में अब भी परिवर्तन संभव है। सुरंग पर काम जारी रखना है।