Friday, February 26, 2021

समंदर की रेत

छुपी रहती है
कभी पैंट की जेबों में ।
कभी जुराबों के अंदर
रह रह कुरेदती है।
कभी कानों के पीछे
दुबकी सी मिलती है
तो कभी तौलिए के रेशों
से झांकती है चमकती सी।

मैं तो गया था लहरों को देखने 
डूबते सूरज को निहारने ।
ठंडी बयां को अपने 
चेहरे पर महसूस करने।
साफ पानी के नीचे 
से झांकते रंगीन कंकड़ों को देखने।
देखने कि कैसे छुपते हैं
शर्मीले केकड़े अपने बिलों में।
और कैसे नई सुर्ख मेहंदी लगे हाथ
सहलाते हैं अपने साथी के चेहरे।
 देखने समंदर किनारे
 सीपियों और टूटे शंख
बीनते छोटे बच्चों का आह्लाद।
और इंद्रधनुषी पैराशूट से
बंधकर उड़ते बड़े बच्चों का
 उत्साहित उन्माद।

तुम भी थी वहीं
हर जगह बिखरी पड़ी
पर हमने तुम्हें नहीं देखा
एकाध बार तुम पर खीझ 
कर गुस्सा भी हुए 
कि इतना तप क्यों जाती हो तुम

लेकिन अब जब मैं लौट आया हूं
अपने घर
तो देखता हूं कि जिन्हें 
मैं इतने प्यार से देखने 
गया था, जिनसे मिलने की
मेरी ख्वाहिश थी,
वो सारी चीज़ें रह गई पीछे
कोई भी साथ निभाने साथ नहीं आया
आई सिर्फ तुम
हर जगह छुप छुपा के
इसीलिए तुम्हें पाता हूं
कभी जेबों में
कभी जूतों में
कभी अपने बालों में

सच है कि यादें समंदर की
 तुम ही अपने साथ लाई हो
सच में तुम्हारा प्यार ही है सच्चा
जो मेरे साथ
 इतनी दूर तक चली आई हो
मेरे हसीन पलों की यादों की 
आखिरी खेप हो
हां तुम तो
समंदर की रेत हो।


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