हिन्दी अखबारों में मिलने वाले सभी शब्दों में जिस हिंदी शब्द पर मुझे सबसे ज्यादा आपत्ति है, वह शब्द है आपत्तिजनक। हिन्दी अखबारों के पाठक एक शब्द अक्सरहां पढ़ते हैं, 'आपत्तिजनक स्थिति'। सामान्यतः प्रेमी युगल आपत्तिजनक स्थिति में पकड़े जाते हैं। किसी पेड़ के पीछे, सिनेमा हाल में और किसी पार्क की बेंच पर। चूंकि वेलेंटाइन महाकुंभ का सालाना मुहूर्त नजदीक है, तो आप यह शब्द अभी जागरण, भास्कर, प्रभात खबर और पंजाब केसरी के पन्नों पर बिखरा हुआ पा सकते हैं। दूसरा शब्द प्रयोग आजकल फैशन में है आपत्तिजनक पोस्ट। किसी ने नेताजी पर आपत्तिजनक पोस्ट कर दी तो ट्विटर ने किसी के आपत्तिजनक पोस्ट को हटा दिया।
कुछ लोग आपत्ति और शिकायत को एक समझ लेते हैं। लेकिन यह बिल्कुल अलग अलग है। इसको ऐसे समझिए । मान लीजिए आपको बदहजमी की शिकायत है तो वैद्य जी चूरन की पुड़िया आपको थमाएंगे। आपत्ति में इसका उल्टा है। आपको आपत्ति होगी, इलाज किसी और का होगा। और तो और चूरन चटाने वाले वैद्य ही हों कोई जरूरी नहीं, कोई भी उत्साही स्वयंसेवक जिसको आपकी आपत्ति से सहानुभूति हो, वैद्य बन कर दूसरे का इलाज शुरू कर देता है।
शिकायत और आपत्ति में दूसरा बड़ा अन्तर है इसकी संक्रामकता का। किसी एक व्यक्ति को शादी में मुफ्त की मटन बिरियानी खाने के बाद बदहजमी और खट्टे डकार की शिकायत हो तो यह शिकायत उन्हीं महाशय तक सीमित रहेगी। लेकिन ख़ुदा ना खस्ता किसी को अगर मटन बिरियानी पर आपत्ति हो गई, तो फिर यह बात उन महाशय तक सीमित नहीं रहेगी। यह आपत्ति उस शादी तक भी सीमित नहीं रहेगी यह बात पहुंचेगी दूर तक। पड़ोसी के किराना से सात समंदर पार रिहाना तक यह आपत्ति फैल सकती है। भले ही ना ही किराना वाले और ना रिहाना वाले को पता भी हो कि शादी किसकी थी, बिरियानी किसने बनाई, रायता था कि नहीं। आपत्ति होने के लिये यह सब जानना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है। आपत्ति वह बला है जो बिना रायता बने रायता फैला सकती है।
और भाई साब, एक बार आपत्ति हो गई, तो समझो विपत्ति हो गई। बात बिरियानी तक नहीं रुकेगी। जिस बकरे को काट कर बिरियानी बनी, उसके नानी के चरित्र प्रमाण पत्र तक खंगाल दिए जाएंगे। जिसने बिरियानी परोसी, उसकी तो खैर नहीं। वह लड़की जो उसके साथ नर्सरी क्लास तक ही पढ़ी थी, वह तक टीवी चैनल पर आकर उसके चरित्र पर टिप्पणी करेगी कि किस तरह उसने नर्सरी क्लास में पेंसिल छीनने के बहाने उसको गलत तरीके से छुआ था।
ऐसा भी नहीं है कि आपत्ति में सब कुछ ग़लत ही है। आपत्ति करना एक व्यवसाय है। आप इसके बिज़नेस मॉडल को एक मुहावरे से समझ सकते है। मुहावरा है हर्रे लगे न फिटकरी पर रंग चोखा आए। आपत्ति का व्यापार भी कुछ ऐसा ही है। आपको करना कुछ नहीं है, बस आपत्ति करनी है। कोई जरूरी नहीं कि मटन बिरियानी आपको नापसंद हो तभी आप उस पर आपत्ति करें । बिरियानी नापसंद होना तो दूर, आपके पास उस शादी का निमंत्रण होना भी जरूरी नहीं है। आप बस किसी के पोस्ट "Loved biriyani at a wedding" पर भी आपत्ति करके अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। हिम्मते मर्दा तो मददे ख़ुदा की तरह फिर आपकी मदद के लिए मोमबत्ती वाले, change.Org वाले, फेसबुक ग्रुप वाले, ह्यूमन राइट्स वाले और मीडिया वाले ऐसे चक्कर लगाएंगे जैसे ईख से भरे ट्रैक्टर के पीछे गांव के बच्चे दौड़ते हैं। बस आपत्ति होनी चाहिए बढ़िया वाली।
तो फिर सोच क्या रहे हैं, कुछ ढूंढ निकालिए आपत्तिजनक और शुरू हो जाइए। क्या कहा? अभी नहीं ? 14 फरवरी के बाद। समझ गया, अभी भाईसाब खुद कुछ आपत्तिजनक करने के मूड में हैं। कोई बात नहीं, जब आपको समय मिले, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
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