सौंदर्य प्रकृति का एक सामान्य सर्वसुलभ लक्षण नहीं है। सामान्यतया प्रकृति अपने साधारण रूप में ही रहती है, सौंदर्य की उत्पत्ति अप्रत्याशित यादृच्छिक घटना है जिसे आप English में unpredictable random event कह सकते हैं। मतलब यह कि कोई ऐसा निश्चित तरीका नहीं है जिससे सौंदर्य की उत्पत्ति सुनिश्चित हो सके।
सौंदर्य की उत्पत्ति और इसके साथ जुड़ा अनिश्चितता के भाव को हम जीवन के हर रूप में देख सकते हैं। साहित्य को ही लें, संत कवि तुलसी दास ने पूरा रामचरितमानस लिखा, राम के जीवन चरित के हर पहलू पर एक से एक दोहे लिखे , छंद लिखे, कोई किसी से कम नहीं। लेकिन को प्रसिद्धि " रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई" को मिली , किसी और दोहे को नहीं मिली। यही सौंदर्य है, यही इसकी उत्पत्ति है। क्या यह दोहा तुलसी का सर्वश्रेष्ठ दोहा है? शायद नहीं, लेकिन इसमें एक सौंदर्य है कि यह सबकी जुबान पर है। दिनकर का वीर रस पूरित और ओजपूर्ण साहित्य एक तरफ है, और "जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है" वाली पंक्ति एक तरफ। इसीलिए शायद कहते हैं कवि लिखता तो बहुत है, रचना कभी कभी ही बनती है। रचना का बनना ही सौंदर्य की उत्पत्ति है।
मानव क्या ईश्वर भी इस नियम से परे नहीं है। प्रकृति ने खरबों मानवों की निर्माण किया, लेकिन मानव सौंदर्य भी इस नियम से परे नहीं है। वही दो आंखें, एक नाक , दो ओंठ का मेल किसी किसी को सुंदर बना देता है और बाकी साधारण रह जाते हैं। चश्मा दुनिया में अरबों लोग पहनते हैं, लेकिन सौंदर्य रजनीकांत के चश्मा पहनने में दिखता है। भौतिकी में हजारों सूत्र हैं लेकिन e =mc2 वाला सौंदर्य किसी और सूत्र है। आइंस्टीन के इस समीकरण एक खूबसूरत समीकरण माना जाता है।
मतलब यह कि सौंदर्य की उत्पति प्रयास से नहीं हो सकती। कोई भी रचनाकार यह नहीं कह सकता कि मेरी यह कृति सबसे सुंदर होगी। दा विंची को कतई यह पूर्वाभास नहीं रहा होगा कि उसकी तूलिका से उकेरी गई मोनालिसा की मुस्कान का सौन्दर्य उसे और उसकी कृति दोनों को अमर कर देगी।
इसका अर्थ क्या यह है कि चूंकि सौंदर्य की उत्पति का पूर्वानुमान कठिन है, इसका प्रयास ही ना किया जाय। बिल्कुल भी नहीं, सौंदर्य के लिए आवश्यक है साधारण का अनवरत उत्पादन। जब प्रकृति भी हजारों टन कोयला बनाने के बाद एक हीरा बना पाती है, तो मानव मात्र की बात ही क्या है। साधारण कोयले के निर्माण की प्रक्रिया से ही हीरा भी बनता है, इसीलिए आवश्यक है कि कोयला बनाने के लिए जो संयम, दाब और बल प्रकृति लगाती रहती है, उसी प्रकार हम अपना प्रयास करते रहें, और सौंदर्य की उत्पति का काम प्रकृति और नियति पर छोड़ दें। शायद कर्मण्येाधिकारस्ते का गीता संदेश भी इसी ओर इशारा करता है कि हम सिर्फ कर्म के भागी है, फल किसी और के हाथ में है।
साधारण और सामान्य काम करते रहने का अनवरत प्रयास कभी कभी आर्डिनरी आउटपुट को एक्स्ट्रा आर्डिनरी आउटपुट बना देता है। यह एक्स्ट्रा शायद अथक प्रयासों का एक पुरस्कार है। सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट जीवन में कितने सुंदर शॉट खेले, लेकिन साउथ अफ्रीका में शोएब अख्तर को सक्वेयर कट से थर्ड मैन के उपर लगाया गया छक्का सौंदर्य उत्पत्ति का उदाहरण है। आवश्यक है कि हम सौंदर्य की प्रत्याशा रखें, प्राप्ति पर विनयता पूर्वक धन्यवाद कहें लेकिन गर्व रहित हो अपने आप को सामान्य और साधारण मान कर अपने सामान्य कार्य में लगे रहें। सौंदर्य और विशेष और यादगार क्षणों की प्राप्ति का मार्ग यही है।
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