देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की पत्नी प्रयागराज की थीं। उनकी जान पहचान महादेवी वर्मा से थी। राजेंद्र बाबू महादेवी को अपनी छोटी बहन मानते थे। एक बार महादेवी वर्मा उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंची। राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर उनको पता चला कि राजेंद्र बाबू और उनकी धर्मपत्नी राजवंशी देवी किसी समारोह में हिस्सा लेने गए हुए हैं और शाम तक ही लौटेंगे। राष्ट्रपति भवन के सहायक स्टाफ ने महादेवी को बताया कि राजेंद्र बाबू ने कहा है कि आपसे पूछ कर आपकी पसंद का खाना बनाया जाय। स्टाफ ने यह भी बताया कि वे खाने पर राष्ट्रपति का इंतजार न करें क्योंकि आज राजेंद्र बाबू और राजवंशी जी का उपवास है और वे शाम में ही एक बार भोजन कर उपवास तोड़ेंगे। यद्यपि महादेवी जी कुछ भूखी थीं, फिर भी उन्होंने संकोचवश कह दिया कि वे भी उपवास पर हैं और शाम में अपने मेजबान दंपत्ति के साथ ही उपवास तोड़ेंगी।
महादेवी अपने संस्मरण में लिखती हैं कि उनके मन में यह भी आया कि राष्ट्रपति जी का उपवास है तो उपवास तोड़ने के लिए भी फल, दूध , और मेवों की व्यवस्था जरूर होगी। तो वे मन मसोस कर शाम और शाम के खाने का इंतज़ार करने लगीं। शाम में खाने की मेज़ पर महादेवी राजेंद्र बाबू और राजवंशी देवी के साथ बैठी तो सामने की थाली में एक उबला आलू रखा था। सिर्फ एक उबला आलू। दिन भर के उपवास के बाद उनका पारण सिर्फ एक उबले आलू से होना था। महादेवी ने अपना सर पीट लिया। हालांकि वह बाद में इसको हंसी से याद करती हैं और यह वाकया राजेंद्र बाबू की सादगी का एक नमूना भर है।
दूसरा प्रसंग भी उसी प्रसंग से जुड़ा है। महादेवी जब राष्ट्रपति भवन से जब चलने लगीं तो राजवंशी देवी ने महादेवी से कहा कि अगली बार जब आएं तो उन के लिए बांस के बने सूप ज़रूर ले आएं। यहां सूप नहीं है कि अनाज ठीक से फटक कर साफ़ कर सकें। अगली बार जब महादेवी इलाहाबाद से दिल्ली गईं तो राष्ट्रपति भवन सूप ले कर गईं। बाद के दिनों में जब राजेंद्र बाबू का कार्यकाल खत्म हुआ तो अपने निजी सामान में उन की पत्नी ने वह सूप भी रखा ले जाने के लिए। राजेंद्र प्रसाद ने जब उस सूप को देखा तो पत्नी से कहा कि यह उपहार में मिला हुआ है , हम इसे नहीं ले जा सकते। और वह सूप राष्ट्रपति भवन में ही छोड़ दिया। चाणक्य और सरकारी तथा निजी दियों की कथा कितनी सच है पता नहीं लेकिन राजेंद्र बाबू के बारे में यह कथा यह दिखाती है कि सादगी और ईमानदारी का ऐसा दुर्लभ स्वरूप भी हो सकता है।
राजेंद्र प्रसाद या जैसा कि बिहार में उनको राजेंदर बाबू कहा जाता है, के 136वी जन्मतिथि पर कोटिश नमन।
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