चश्मे होते हैं नजर सुधारने के लिए। किसी चीज़ को साफ देखने के लिए। चश्मे होते हैं आंखों को धूप धूल से बचाने के लिये। लेकिन चश्मे हमेशा नहीं पहन सकते। चश्मे उतार कर बीच बीच में पोंछने चाहिए किसी साफ कपड़े से। शायद बीच बीच में यह भी देखना पड़ता है कि चश्मे का पावर बदल तो नहीं गया, फ्रेम टेढ़ा तो नहीं हो गया। चश्मे को कभी कभी बदलना भी पड़ता है। किस्मत अच्छी हुई तो यह भी हो जाता है कि डॉक्टर कहे कि अब आपको चश्मा पहनने की जरूरत ही नहीं।
चश्मे की तासीर होती है कि दुनिया को अपने रंग का बना देता है।लाल चश्मा पहन लो तो हर चीज़ लाल दिखने लगती है। हरे चश्मे आपको सावन का अंधा बना देते हैं। इसीलिए बीच बीच में चश्मे उतार कर भी देखने चाहिए। चश्मे की आदत होती है कि आपके दोनों कान पकड़ कर रखते हैं जैसे कोई पुराने मास्टर साहब हों। और हां जब अंधेरा छाया हो तब तो चश्मा उतार ही देना चाहिए। अंधेरे में चश्मे का कोई काम नहीं। चश्मा उजाले का मोहताज है, अंधेरे में आपको कोई चश्मा काम नहीं देता। अंधेरे में बिना गिरे चलने के लिए साथी का हाथ काम आता है, चश्मा नहीं। अंधेरे में भी धूप चश्मा पहन कर चले तो गिरोगे जरूर। इसीलिए अंधेरे में चश्मा उतारना जरूरी है।
अंधेरे में ही क्यों किसी के नजदीक जाने में भी चश्मा बीच में आ जाता है। जब किसी के नजदीक जाना हो , किसी और की सांसे अपने चेहरे पर महसूस करने वाली नजदीकी चाहिए हो तो भी चश्मा उतार कर परे रखना चाहिए।चश्मा पहन कर बहुत सारे सुखों का आस्वाद करना मुश्किल हो जाता है।
चश्मा है ही उतारने के लिए। अपने चेहरे पर चश्मे सिलवाए नहीं जाते। सिले हुए चश्मे वाले चेहरे डरावने दिखते हैं दूसरों को और जिसने पहना है उसकी बात ही क्या। अपने चश्मे के कांच की दरार उसको दुनिया की दरार लगने लगती है। गन्दा कांच होता है , गंदी दुनिया दिखने लगती है। धुंधली नजर और खराब चश्मा मिलकर सूरज को भी धुंधला कर देते हैं।
जरूरी है कि आप चश्मे उतारते रहें, साफ करते रहें, उसका पावर चेक करते रहें और जरूरत पड़ने पर बदल भी लें। तो आपने अपना चश्मा आखिरी बार कब साफ किया था और कब देखा था इस दुनिया को बिना चश्मे के? कर के देखिए, अच्छा लगेगा।
No comments:
Post a Comment