Monday, November 2, 2020

धर्मराज और दुशासन का विमर्श

वैसे तो महाभारत के समय के आदर्शों और नियमों को आज के मूल्यों की कसौटी पर कसना उचित नहीं है |  पर प्रतीकार्थों में ही सही, स्त्री विमर्श का यह नजरिया भी पुरुष प्रधान ही है | द्रौपदी का वस्त्रहरण बदनाम है क्योंकि उस समय उनके पति , पितामह , द्रोण ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया| स्त्री का वस्तुकरण हुआ  और नीतिज्ञ पुरुष शांत बैठे रहे | मतलब यह कि स्त्री के वस्त्र हरण पर प्रश्न इसीलिए उठे क्योंकि पुरुष ने कुछ नहीं किया | प्रश्न का दायरा फिर नारी की अस्मिता से इतर पुरुष के गर्व और ज्ञान तक सीमित हो जा रहा  है | 

द्रौपदी का वस्तुकरण  सिर्फ हस्तिनापुर की राजसभा में नहीं हुआ , उस दिन भी हुआ जब उसको किसी रोटी की तरह पांच भाइयों में बांटने का निर्णय लिया गया | वस्त्रहरण से उसका वस्तुकरण  पहले उस समय भी हुआ जब उसको दांव पर लगाया  गया। इतना ही क्यों जन्म के समय ही उसका नामकरण द्रौपदी हुआ, यानी द्रुपद की पुत्री।  स्त्री का अपना एक स्वतंत्र नाम तक नहीं, नाम तक के लिए नारी पुरुष पर आश्रित है। व्यर्थ ही दुर्योधन और दुशासन को खल बनाया गया जबकि पूरा समाज और इसी साझा मानसिकता जन्य पाप में शामिल है।




लेकिन समाज हमेशा एक दुर्योधन खोजता है जिसकी जंघा तोड़ कर भीम वीरता का दंभ भर सके, एक दुशासन खोजता है जिसकी छाती का लहू पूरे समाज का पाप धो सके। दुर्योधन के मरने के बाद पूरा समाज अपने आप को धर्मराज समझता है । वहीं धर्मराज जो स्वर्गारोहण प्रसंग में द्रौपदी के मरने के समय उसको यह ज्ञान दे सके कि तुमने सभी पतियों को समान स्नेह नहीं देकर न्याय नहीं किया, इसलिए तुम स्वर्ग नहीं जा सकती और सबसे पहले मृत्यु की अधिकारिणी हो। द्रौपदी ने न्याय नहीं किया!! उसके साथ कौन सा न्याय हुआ था जब उसका बंटवारा किया गया था। उसको दांव पर लगाने वाले और मरते वक़्त भी नीचा दिखाने वाले उस दुर्योधन से कैसे बेहतर हैं जिसने उसके वस्त्र हरण का आदेश दिया।

  प्रश्न यह कि धर्मराज और दुर्योधन को परिभाषित करने का अधिकार स्त्री को कब मिलेगा? कब तक पुरुष यह निर्धारित करेंगे कि एक स्त्री के सम्मान के लिए युद्ध लड़ा जाए या उसके नाक कान काटने का आदेश देकर भी मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि बना रहा जाय। कौन धर्मराज है और और कौन मर्यादा पुरुषोत्तम, इसका निर्धारण करने में द्रौपदी और शूर्पणखा का विचार लेना आवश्यक है। रही बात द्रौपदी के सम्मान की, माना कि कृपाचार्य और भीष्म राजसभा में चुप रहे, लेकिन पांडव भी उसके सम्मान के खातिर कुरुक्षेत्र नहीं लड़े। उन्हें आधा राज्य मिल गया होता, तो द्रौपदी का अपमान भी भुला दिया जाता। आधा राज्य क्या, पांडव तो पांच गांव पाकर भी सब भूलने को तैयार थे। महाभारत का युद्ध लड़ा गया था सम्पत्ति के लिए, राज्य के लिए । बाद में भले उसको धर्मयुद्ध कहा जाय या द्रौपदी के सम्मान के लिए लड़ा गया नीति युद्ध, यह इतिहास की विजेता पक्ष द्वारा की गई एक सुविधाजनक व्याख्या से ज्यादा कुछ नहीं।

बाक़ी मेरे चचा पाठक अभिजित जी ने क्या खूब लिखा है, दोनों को साथ में पढ़िए और मंथन करिए। नवाबगंज में आपका स्वागत है।।🙏🙏



पाठक अभिजीत की कविता .......✍️

शस्त्र अस्त्र के साथ
जो हो सकते कहीं भी,
रूद्र का अहर्निश ताँडव।
शर्म और वचन के द्वंद
में हाथ बाँधे, बैठे पाँच पाँडव।

शकुनी की चाल में उलझे
सत्य और धर्म का
युद्धिष्ठिर प्रलाप।
कर्ण के तीखे शब्दबाणों से
छलनी मर्यादा और 
और एक कलंकित अभिशाप।

विदुर  हो रहे पत्यक्षदर्शी,
दुर्योधन का अट्टहास।
द्रोण और कृप की शिक्षा का
नीचे गिरता आकाश।
....…..अभिजित........✍️

शासन से बँधे ,गद्दी के रक्षक,
स्वयं और स्वयं की प्रतिज्ञा 
से लड़ता भीष्म प्राण।
और इन सबके बीच होता है 
शासन के 'दू'षित दंभ से
स्त्री का अपमान।
....…..अभिजित........✍️

अंधे धृतराष्ट्र पर पुत्र मोह का
दोष सबने मढ़ा है।
पर प्रश्न व्यापक है बहुत और
सबके लिए बड़ा है।

नारी का वस्तुकरण था यह,
किस धर्म से मिली प्रज्ञा थी?
जब मर्यादाएँ लाँघी जा रही थी
क्यों हाथ बाँधती  प्रतिज्ञा थी?

मर्यादा की सीमा के पार 
वचन तोड़ देने का आदेश क्यों नहीं?
स्त्री के अपमान के साथ
शस्त्र उठा लेने का  संदेश क्यों नहीं?
....…..अभिजित........✍️

भीष्म को नहीं पूछे गए क्यों?
नारी रक्षा से बड़ा धर्म,प्रतिज्ञा कैसे हो गई ?
जिस सभा में स्वयं भीष्म,नारी कैसे रो गई?

द्रोण, कृप, विदुर धृतराष्ट्र भीष्म और पांडव
सबको द्रोपदी के दो करुण नयन ने निहारा था
पर उस व्यथा पर आंखें झुकाए रही थी सभा 
अबला को हर युग में बस भगवान का सहारा था
....…..अभिजित........✍️

युग ने क्या सीखा ? क्या सिखाया गया है?
बाल पकड घसीट द्रोपदी को कई बार लाया गया है।

द्वापर का दरबार हो या आज का  समाज ,
कितनी बार द्रोपदियों का स्वाभिमान तोड़ेगा?
अपनी प्रतिज्ञाओं में पड़ा प्रबुद्ध और शक्तिशाली
क्या हर बार द्रोपदी को भगवान भरोसे छोड़ेगा?




No comments: