अब मुर्गियों को जमा करना इतना आसान नहीं। कारण यह कि मुर्गी के भाव बढ़ गए हैं। उसके अंदर का पांच साली अंडा बस निकलने ही वाला है। अब उस अंडे के कारण उसकी चाल बदल गई है। मुर्गी के पास ऐसे लोग आ गए हैं जो उसकी बांग को राग मल्हार बताते हैं। उसकी कलगी को लाल सोने का मुकुट। लोगों की चिंता बस इतनी कि मुर्गी अपना अंडा किसी और की टोकरी में ना डाल दे।
अब मुर्गियों को जमा करने के लिए तमाशा चाहिए। ऐसा तमाशा जिसको देखने के लिए मुर्गी अपना कीड़े बीनने का काम कुछ वक्त के लिए भूल जाय और तमाशा देखने आ जाए। भूल जाय कि उसके पांच साल उसके क्या उसके दादा परदादा सभी उस गोबर के ढेर से ही कीड़े बीनते हैं। अब मुर्गी बेचारी करे क्या? एक तो बाहर का लुभावना तमाशा और एक उसके अंदर वाला मीठा मीठा दर्द। दोनों मिल कर मुर्गी को ले आते हैं तमाशे घर में।
मुर्गियों की भीड़ तो आ गई तो फिर तमाशा भी वैसा मजेदार होना चाहिए। अब तमाशे को मजेदार बनाने के लिए कभी मुर्गियों को रुलाना पड़ता है, कभी हंसाना पड़ता है, कभी डराना पड़ता है , तो कभी कभी गुदगुदाना पड़ता है। एक तमाशा हर बार नहीं चलता, नए तमाशे इज़ाद करने होते हैं। तमाशा करने वाला मदारी स्टेज पर खेल दिखाता है और उसके ज़मूरे टोकरी में अंडे जमा करते हैं। सारे खेल उस मदारी और उसके जमूरों पर टिका है। इस तमाशे के बहुत नाम हैं लेकिन एक नाम है सबसे ज्यादा जंचने वाला। जमुरीयत ।।
खेल खत्म हो गया है । जमुरे अंडे लेकर जा चुके हैं। मुर्गियां वापस से गोबर के ढेर पर कीड़े बीन रही हैं। उसकी बांग का राग मल्हार कहीं खो गया है और उसकी कलगी के शैदाई ढूंढने से भी नहीं मिलते। अब जमुरियत के लिए पांच साल का लंबा इंतजार। अंडों का मौसम जब आएगा तो जमूरा फिर आएगा, जमुरीयत फिर दिखेगी।
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