Monday, March 25, 2019

नारीवाद पर मंथन

नैमिषारण्य में मंद मंद प्रवाहित समीर और पुष्पों की सुवासित संगति में बैठे होने के बाद भी शिष्य के ललाट पर पड़े हुए बल देख गुरु का भी चिंतित होना स्वाभाविक था। पूछ बैठे, क्या हुआ वत्स? किस  दुविधा में पड़े हो? मन में ऐसी कौन से गुत्थी है  जिसको सुलझाने में तुम्हारे चेहरे की मांसपेशियां उलझ गई हैं। मन में कोई जिज्ञासा हो तो निस्संकोच होकर पूछो।
शिष्य ने कहा गुरु आप तो अंतर्यामी हैं, हर समस्या , उसके कारण और निवारण सबका ज्ञान रखते हैं। मैं जानता हूँ कि अगर मेरे प्रश्न का उत्तर है तो सिर्फ आपके पास है। लेकिन सोचता हूँ कि यह प्रश्न पूछ कर कोई विवाद ना उत्पन्न हो जाये।

देखो पुत्र,चित्त को भयमुक्त करो और प्रश्न करो।  जिज्ञासा मानव विकास का मूल है और विवाद की चिंता जिज्ञासा का सबसे बड़ा शत्रु है। शिष्य का प्रश्न जितना कठिन हो गुरु का उत्तर उतना ही गूढ़ होता है। परंतु ऐसा कौन सा प्रश्न हो सकता है जिसके बारे में सवाल तक पूछने पर विवाद हो सकता है?

गुरुदेव, यह नारीवाद क्या है? इस शब्द के अर्थ को वर्तमान परिपेक्ष्य में परिभाषित करिये। और नारीवाद नारीकल्याण के कैसे भिन्न है?

गुरु की मुस्कान प्रश्न सुन कर ही कुम्हला गई। फिर अपने आप को संभालते हुए धीरे से बोलने लगे। सुनो वत्स। नारीवाद दो शब्दों से मिलकर बना है। नारी और वाद। पहले नारी शब्द को लो। नारी शब्द नर शब्द में ई मात्रा के युग्म से बना है। ई ईश का प्रतीक है, इष्ट का प्रतीक है। नर में जब इष्ट का तत्व मिलता है तो नारी का परिनिर्माण होता है। नारी नर का वह संवर्धित रूप है जो इष्ट के निकट है। नारी नर से हमेशा उत्तम है इसीलिये नर जब अपने सर्वोत्तम को प्राप्त कर लेता है तो नारी के समकक्ष हो जाता है।

आपको बीच में रोकूंगा गुरुदेव। नर अपने सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त होने पर नारी के समकक्ष हो जाता है?? यह बात उदाहरण देकर समझायें। ऐसा कैसे हो सकता है? और दूसरा मेरा प्रश्न? अगर नारी इतनी ही महान और पूज्य है तो मेरा प्रश्न सुन आपका मुख ऐसे क्यों कुम्हला गया जैसे सूदख़ोर महाजन को देख किसान की मुस्कुराहट गायब हो जाती है।

वत्स। मृत्यु को काल कहते हैं, उससे भी बड़े हैं भगवान महाकाल। और जो उनकी छाती पर सवार हो जाये उसको वह शक्ति महाकाली कहलाती है। भारत वर्ष में कोई कुश्ती में  अच्छा करे तो उसे कहते हैं वाह क्या पहलवान है। वही पहलवान जब किसी से पराजित न हो तो लोग कहने लगते हैं कि यह अब दारा सिंह जैसे हो गया। दारा का मतलब जानते हो ना? दारा का अर्थ है स्त्री। उदहारण अनेक हैं, हर क्षेत्र में हैं। थोड़ा अध्ययन और थोड़ा सा चिंतन करो स्वतः समझ जाओगे।

गुरुदेव। आपके दिये उदाहरण सटीक है लेकिन मेरा मूल प्रश्न और दूसरा प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। मेरा ध्यान भटकाने का प्रयास न करें, उसके लिये  तो समसामयिक मीडिया है। आप मेरी जिज्ञासा शांत करें बस।

शांत वत्स शांत। तुम्हारे प्रश्न का ही उत्तर दे रहा हूँ। तुम तो वैसे उत्तेजित ही जाते हो जैसे राहुल गांधी का एक ठीक ठाक भाषण सुन कर सुरजेवाला हो जाता है । तुमने पूछा था कि यह नारीवाद क्या है। मैने तुम्हें नारी का अर्थ समझाया। जब तक नारी का प्रश्न है , वो तो पूज्य है, श्रेष्ठ है। समस्या नारी शब्द से नही है। समस्या है यह शब्द वाद। वाद का मतलब है विवाद, वाद का अर्थ है बातें। तो नारीवाद का अर्थ क्या हुआ? नारीवाद का अर्थ हुआ, नारी को लेकर विवाद करना,नारी को लेकर बातें करना। मतलब जो नारी को लेकर ऐसे बातें करे जिससे विवाद हो तो वह व्यक्ति  नारीवादी कहलायेगा और यह विवाद उत्पन्न करने की प्रवृत्ति नारी वाद कहलायेगी।

गुरुदेव। यह बात सुपाच्य नहीं लगती। नारीवाद का अर्थ है नारी को लेकर विवाद करने वाला। आप तो बिल्कुल एक पुरुषवादी पितृसत्तात्मक वराह की तरह बात कर रहे हैं।

वत्स। मैं एक मेल शौविनिस्टिक पिग या पुरुषवादी पितृसत्तात्मक वराह हूँ या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन तुम एक आधुनिक नारीवादी अवश्य बन चुके हो। देखो तुमने नारी शब्द सुनते ही विवाद कर दिया। यह कहते ही गुरु के मुखारविन्द पर एक सरल मुस्कुराहट तैर गई।

क्षमा गुरुदेव। मैं दिग्भ्रमित से ही गया था। लेकिन आप ही मुझे आधुनिक नारीवाद के इस अंधकूप से बाहर निकालें।

देखो वत्स। अपने आप को संभालो। राजा राम मोहन रॉय जिन्होंने सती प्रथा का उन्मूलन करबे में अहम भूमिका निभायी, आज के पैमानों पर नारीवादी नहीं थे। उन्होंने सती प्रथा को बंद करवाया लेकिन क्या उससे पहले उन्होंने नारियों की सहमति ली। आ हेल्प ऑफर्ड विदाउट कंसेंट इस प्लेन हर्रासमेन्ट।। उनका नाम ही देख लो। राजा राम मोहन और रॉय। एक ही नाम में चार चार पुरुषवादी नाम रखने वाले नारीवादी कैसे हो सकते हैं।

गुरु।। यह क्या बोल रहे हो। आपके संवाद से मुझे व्यंग्य की बू आ रही है। क्या आप भी विवाद पैदा कर वादी और फिर नारीवादी बनना चाहते हैं??

न वत्स। में नारीवादी नहीं बन सकता। यह दाढ़ी बढ़ा कर कोई नारी वादी नहीं हो सकता क्योंकि मैं वैक्सिंग और थ्रेडिंग के दर्द से अनजान हूँ। वो दर्द समझे बिना आधुनिक नारीवादी कोई नहीं बन सकता। वैसे भी विश्व में इतना नारीवादी हैं कि अब ज्यादा नारीवादियों की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है।

क्या गुरुदेव। अगर दुनिया में इतने ही नारीवादी हैं तो नारियों का कल्याण क्यों नहीं हुआ? पाकिस्तान में अगवा की गई किशोर लड़कियों के जबरन धर्मपरिवर्तन पर नारीवादी लोग क्यों चुप हैं?

वत्स।। वो चुप नहीं है, वे व्यस्त हैं सोशल मीडिया पर लड़ने और लोगों को नारीवाद सिखाने में। जब यह कार्य सम्पन्न हो जाएगा तो उन लड़कियों के बारे में भी सोचा जायेगा।।

गुरुदेव आप धन्य हो।  यह व्याख्यान देकर जो आपने मुसीबत मोल ली है, उससे आप ही निपटो। मैं चला। प्रणाम गुरुदेव।





Saturday, March 16, 2019

कैकेयी की तरह व्यवहार

मसूद अजहर को चीन अगर आतंकवादी नहीं मानता, तो ना माने
। उससे हमारा सरोकार उतना ही होना चाहिए जितनी उसकी आवश्यकता है। चीन की अपनी अलग विदेश नीति है, पाकिस्तान उसका एक सामरिक और व्यापारिक सहयोगी है, वह उसका खुले मंच पर विरोध नहीं करेगा। लेकिन वो ज़माना गया जब किसी देश की विदेश नीति स्थायी मित्र या स्थायी शत्रु वाले सिद्धांत पर चलती थी। आज की विदेश नीति का एक ही सिद्धांत है और वह है स्थायी राष्ट्रीय हित। बालाकोट पर बम गिराने के बाद चीन ने यह कभी नही कहा कि हम भारत को इस होली पर पिचकारी और रंगीन टोपियां नहीं बेचेंगे। और ना ही उसने पाकिस्तान के समर्थन में कुछ कहा। कल को अगर भारत ने एक और सामरिक कदम में ओसामा की तर्ज़ पर मसूद को भी मार गिराया तो भी आपकी दीवाली के झालर, टिमटिम करने वाले बल्ब और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा भी चीन से ही आएंगे।

मसूद अजहर हमारा गुनाहगार है, उससे कैसे निपटना है वो हम लोगों को सोचना होगा। अमेरिका ने ओसामा को मारने से पहले चीन से नहीं पूछा था कि ओसामा ग्लोबल आतंकवादी है या क्षेत्रीय। आपरेशन थंडर बोल्ट से पहले इज़राइल ने किसी की इजाज़त नहीं ली। चीन से यह आशा रखना कि वो पाकिस्तान का दाना पानी बंद कर दे कुछ ऐसा है कि आप अपने गांव के बनिये को कहें कि भैया फलां आदमी को राशन मत देना क्योंकि उसके मुझे गाली दी है। भाई तुम्हें गाली दी है तो तुम निपटो ना, बनिया न ही दूसरे आदमी को राशन बेचना बंद करेगा और न ही तुम्हारा बनिये का राशन न खरीदना कोई स्थायी समाधान है। याद रखिये कि बालाकोट की बमबारी के कुछ दिन बाद ही समझौता एक्सप्रेस फिर चल पड़ी और उसके कुछ दिनों बाद ही करतारपुर कॉरिडोरके लिये पाकिस्तान और भारत की वार्ता प्रारम्भ हो गई।

हम इज़राइल से भी संबंध रखते हैं और फिलिस्तीन से भी हमारे रिश्ते मित्रवत ही हैं।  शीत युद्ध और आयरन कर्टेन के समय चलने वाली नीतियां आज के बहुध्रुवीय विश्व में प्रासंगिक नहीं हैं। चीन से फ़ोन जरूर खरीदिये लेकिन जब डोकलाम में चीन अपनी आँखें तरेरे तो पूरे जोश के साथ उसकी आँखों में आँखें डाल कर बात करिये जब तब वो पीछे न हटे। मसूद अजहर को चीन आतंकी नहीं मानता , दाऊद को लेकर तो उसकी कोई आपत्ति नहीं है।फिर आपने उसको अब तक क्यों नहीं पकड़ा। मसूद अजहर वाले मामले में चीन को बेवजह तूल दिया जा रहा है। चीन को बार बार कोसना हमारी कूटनीतिक विफलता है और चीनी सामान के बहिष्कार की धमकी एक बन्दरघुड़की से ज्यादा कुछ नहीं। समय है कि हम अपनी लड़ाई खुद लड़ें और दूसरों से अनपेक्षित आशा न रखें। हाँ अगर कोई देश हमारा पक्ष मानता है तो उसका स्वागत होना चाहिये, लेकिन सिर्फ इस चीज़ के मुद्दे पर किसी देश से कूटनीतिक रिश्ते को बंधक नहीं बनाया जा सकता।  चीन से आप प्यार कर सकते हैं या नफरत, पर उसे दरकिनार नहीं कर सकते। नाटक चंद्रगुप्त में चाणक्य के माध्यम से जयशंकर प्रसाद लिखते हैं कि हे सेल्युकस । हम आर्यावर्त्त के लोग युद्ध लड़ना जानते हैं द्वेष रखना नहीं।
चीन से अगर युद्ध लड़ना है तो हजारों ( वर्गमील का) कारण मौजूद हैं।  चलिये पहले उस वजह का निपटारा करते हैं। अगर नहीं तो फिर मसूद का बहाना बना कर कोप भवन में बैठना बन्द करिये। राम के वंशज हैं तो वीरोचित और बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार करिये, कैकेयी बन कर रूठना और श्राप देना बंद करिये।

Friday, March 8, 2019

महत्वाकांक्षा का सीमेंट

सज्जनता और महत्वाकांक्षाओं का मिलन बड़ा ही अस्वाभाविक होता है। महत्वाकांक्षा का सीमेंट निष्ठुरता की ईंटो को जोड़ कर एक प्रासाद बना सकता है। सज्जनता की नरम मिट्टी को महत्वाकांक्षा का सीमेंट नही रास आता। सज्जनता की मिट्टी का गोला भले ही धूप में सूख जाए,कठोर हो जाये, दुखी हृदय से निकली आँसू की दो बूँदे उसे नर्म कर फिर से कमजोर कर देने के लिये काफी हैं। महत्वाकांक्षा का सीमेंट आँसुओं की नमी पाकर कुछ और मजबूत ही हो जाता है। सज्जन लोग राजनीति में क्यों नहीं आते या टिकते, शायद इसका कारण भी यही है। निष्ठुरता हमेशा एक अवगुण नहीं है, शायद बड़ा बनने के लिए निष्ठुर होना आवश्यक है।

Tuesday, March 5, 2019

बालाकोट के सबूत

जिन लोगों को बालाकोट पर हमले के सबूत चाहिए वो मांगते रहें। कुछ बुध्दिजीवियों का कारुणिक विधवा विलाप ही सबसे बड़ा सबूत है। अश्रु धारा नखविच्छेद की परिणीति नहीं होती बल्कि हृदय पर लगे चोट और इसी हृदय से जुड़ी शिराओं में प्रवाहित रुधिर के दृष्टिगत होने पर होती है। सौरभ कालिया के साथ अमानवीय और बर्बर व्यवहार करने वाले अगर कमांडर अभिनन्दन को बिना शर्त ससम्मान रिहा करते हैं तो यह शत्रु की भलमनसाहत से ज्यादा उनकी विवशता परिलक्षित करती है। पापी मनुष्य अगर ईश्वर को याद करने लगे तो उसके सद्पुरुष बनने की जगह उसके भयाक्रांत होने की आशंका ज्यादा होती है। मसूद अजहर की मृत्यु आपको असामयिक लग सकती है तो हो सकता है कि वर्तमान समय और कालक्रम के कई पहले आपकी दृष्टि के छूट गए हैं। आँखें खोलिये, शत्रु के हताहत होने के प्रमाण आपको दिखने लगेंगे।

रही बात तस्वीरों की और डिजिटल प्रमाणों की, एक बात का स्मरण रखिये कि चोट मारना कूटनीति नहीं है, कूटनीति है सही समय पर चोट करना। राजनीति और कूटनीति में ताश के खेल की तरह अपने पत्ते तब खोले जाते हैं जब सामने वाला अपने सारे पत्ते खोल चुका हो। कभी कभी अपने कमजोर पत्तों को भी छुपा कर विरोधी के मजबूत पत्तों के किले को एक हड़बड़ाहट का भाव पैदा कर ढहाया जाता है। क्या कारण है कि धोनी खेल को अधिकतर आखिरी ओवरों तक ले जाता है। ताकि मानसिक दवाब से विरोधी भूल करे और उसका लाभ आखिरी वार करने की योजना में मिले। जो लड़ाकू विमान रात्रि के अंधेरे में वार कर सकते हैं, उसमें एक तस्वीर लेने की तकनीक तो होगी ही। आखिरी वार आखिरी ओवर में किया जाता है और किया भी जाएगा। आखिरी गेंद पर लगा हुआ छक्का सिर्फ खेल में नहीं बाकी विरोधी की मानसिकता पर भी विजय दिलाता है। आखिरी ओवरों का इंतज़ार करिये, आपकी जीत का रोमांच और विरोधियों का रुदन दोनों ही ज्यादा होंगे।