Saturday, October 5, 2024

पत्थरों पर पड़ा हरसिंगार

पत्थरों पर बिखरे हरसिंगार के नाजुक फूल, मानो जीवन की कठोर वास्तविकताओं के बीच किसी स्वप्निल सौंदर्य की झलक हों। सूखे पीले पत्ते, जो कभी हरे-भरे जीवन की सांस लेते थे, अब समय के थपेड़ों से बेजान होकर खोए हुए अवसरों की मौन कथा कहते प्रतीत होते हैं। ये पत्ते उस बीते हुए समय के प्रतीक हैं, जब संभावनाएँ थीं, परंतु अब केवल स्मृतियों के साए शेष हैं। वहीं, जीवन की कठिनाइयों के प्रतीक ये कठोर पत्थर, हमारे पथ पर आई वे बाधाएँ हैं, जो हर कदम पर हमारी परीक्षा लेती हैं, हमारे धैर्य और सहनशीलता को परखती हैं।

लेकिन इन पत्थरों पर उगती हरी काई मानो उन सूने क्षणों में भी आशा की एक नन्ही किरण बुनती हो। यह काई बताती है कि चाहे जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, इंसान की अदम्य इच्छाशक्ति और प्रयास, अंधकार में भी एक हरीतिमा का सृजन कर सकते हैं। यह हरियाली उस संघर्ष का प्रतीक है, जो निराशा की परतों के नीचे छिपी आशा के बीजों को पोषित करती है।

और इन सबके बीच हरसिंगार के ये फूल, अपनी कोमल, शुभ्र पंखुड़ियों से मानो जीवन के सबसे कठिन और स्याह क्षणों में भी सुंदरता और आनंद की अनुभूति कराते हैं। वे कहते हैं कि संघर्षों के बीच भी एक कोमल सौंदर्य छिपा होता है, जो दिल को सुकून देता है, जैसे जीवन की तपती धूप में एक ठंडी बयार। इन फूलों का अस्तित्व मानो इस सत्य को उद्घाटित करता है कि दुःख और कठिनाईयों के बीच भी, कहीं न कहीं, एक अमर सौंदर्य और शाश्वत आशा की कोमल छाया होती है, जो हमें जीने की प्रेरणा देती है।

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