Thursday, November 3, 2022

शरीर में बांछे कहां होती हैं?

हिंदी में एक मुहावरा है बांछे खिलना। और इसी के साथ श्रीलाल शुक्ल द्वारा राग दरबारी में लिखा एक मशहूर मजाक है कि मुझे नहीं पता कि शरीर में बांछे कहां होती हैं लेकिन मेरी बांछे खिल गईं। मैने सोचा कि हिंदी में कोई बात ऐसे निरर्थक नहीं होती। अगर मानव शरीर में बांछे जैसा कोई अंग नहीं होता तो बांछे खिलना मुहावरा आया कहां से। बांछे खिलना का अर्थ है अत्यधिक प्रसन्न होना। 

चूंकि प्रसन्नता एक मानसिक अवस्था है तो बांछे खिलना का कोई मतलब मन से होना चाहिए। एक तत्सम शब्द है वांछा, जिसका अर्थ है इच्छा अभिलाषा। इसी शब्द से वांछनीय , अवांछनीय जैसे शब्द बने हैं। कल्पतरु को भी वांछा कल्पद्रूम कहा गया है। संभव है कि बांछे शब्द वांछा का अपभ्रंश है। स्वाभाविक है कि जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो इसमें अनेक सपनों, इच्छाओं, सुखद भविष्य की कल्पनाओं और आशाओं का संचरण होता है। यह सब व्यक्ति के मन में होता है और संभवतः मन और मन से जुड़े कल्पना लोक में आई इसी तीव्रता को बांछे खिलना जैसे मुहावरे द्वारा निरूपित किया जाता है। वैसे बांछा का एक देशज अर्थ होता है होंठो की संधि। मुस्कुराने की वजह से  हमारी चेहरे पर आई मुस्कान के लंबे होने को भी बांछे खिलने से जोड़ा जा सकता है। वैसे बांछे खिलना अगर प्रसन्नता से जुड़ा है तो आवश्यक नहीं कि वो चेहरे पर प्रतिबिंबित हो ही। मिलाजुलाकार इसकी पहली व्याख्या ही ज्यादा सही प्रतीत होती है।

तो अगली बार कोई जब कहे कि उन्हें नहीं पता कि शरीर में बांछे कहां होती हैं, तो आप उनको कह सकते हैं कि बांछे शरीर में नहीं आपके मन में होती हैं। और उन्हें यह भी बताएं कि बांछे ज्यादा खिलना वांछनीय नहीं है। 

2 comments:

Unknown said...

रोचक भी, ज्ञानवर्द्धक भी!(सदय)

Unknown said...

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