Wednesday, September 21, 2022

राजू भईया के लिए।

गजोधर भैया,
हंसाते हंसाते अचानक से चल दिए। अब कौन सुनाएगा कि बूढ़ा गब्बर का आगे क्या हुआ? क्या सांबा और कालिया अब भी उसको लाफा देते रहते हैं? कौन फिल्म थिएटर में देख कर उसकी कहानी हमको सुनाएगा। बहुत इच्छा थी कि आप लाल सिंह चड्ढा देख कर आते और उसकी कहानी सुनाते। अब यह इच्छा तो पूरी होगी नहीं। जीजा साली वाली कहानी भी आप अधूरी छोड़ गए। जीजू!! एक रसगुल्ला, खाना पड़ेगा!!! कहने वाली साली कहां है आज कल? बहन की शादी करवाने वाले भाई की शादी हुई कि नहीं, यह भी बिना बताए चल दिए। कभी कभी गुस्सा भी आता है कि शायद आप बड़े आदमी बन गए तो हम लोगों की परवाह करना छोड़ दिया। हां कर लो यह पहले, बड़े आदमी हैं करते होंगे। 

राजू भैया, कितनी बातें थी जो तुमसे सुननी थी। कितनी कहानियां थी जो आपको सुनानी थी।

बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते।

जहां रहना, हंसते रहना!! हंसाते रहना।।

Tuesday, September 20, 2022

A peaceful natural death

Queen Elizabeth II has died peacefully of natural causes. Of course, she lived an extraordinary life. She was corronated as queen almost seven decades ago. She saw a lot of water flow down the Thames. But more than her life, it's her death that catches my attention. When I read the news about the queen dying peacefully of natural causes, I thought this kind of death is becoming very very rare. How many of us have seen people around us dying peacefully at home due to natural causes after living a full life. Most of the deaths we see are preceded by prolonged illness, medical procedures, and painful medication. Diabetes in kids, heart attacks in thirties and deaths in 40s don't surprise us anymore. Rarely do people die at home; it's either in hospital or on the way to hospital. Heart attacks, diabetes, hypertension, and other lifestyle diseases have denied most of us a natural, peaceful death. The Queen definitely had a privileged life, and she had a privileged death too. Most of us may wish for a life like her; a death like her is equally desirable, if not more. May her soul rest in peace!

अलार्म घड़ी सुलाने के लिए है

अलार्म घड़ी बजनी चाहिए यह बताने के लिए कि सोने का वक्त हो गया। अलार्म घड़ी इसलिए नहीं बनी कि आपको कच्ची नींद से जगाए । अलार्म घड़ी इसलिए बनी है कि आपको कहे कि थोड़ा सो जाओ, थक गए होगे ना कि सुबह सुबह आपको चिल्ला चिल्ला कर जगाए कि उठ जाओ कब तक सोते रहोगे। अलार्म घड़ी आपका खयाल रखने के लिए बनी है, आपकी एक सेविका है जो आपको सही समय याद दिलाती है। हमने उसको अपनी एक क्रूर गुस्सैल मालकिन बना दिया है जिसकी आवाज तक हम सुनना नहीं चाहते, लेकिन जिसकी बात मानना हमारी मजबूरी बन गई है। क्यों ना हम अलार्म घड़ी को ऐसे अपने जीवन में ऐसे अपनाए कि उसकी आवाज सुन कर हमें खुशी हो न कि हर सुबह उसको बार बार खीझ कर हम चुप कराते रहें। 

भला किसको अपनी जिंदगी में हर सुबह चीख चीख कर नींद तोड़ने वाला दोस्त चाहिए!!