समंदर के किनारे
देखने कि कैसे बच्चे बनाते हैं
रेत के टीले,
और लहरों को देख खुश होते हैं,
कैसे बीनते हैं सीप के टुकड़े,
और अपनी मुठ्ठी में भर
लेते हैं लहरों की झाग,
छोटी छोटी खुशियों से
भर जाती है उनकी झोली।
और मैं उनके साथ ही खड़ा
महरूम हूं उन सारी खुशियां से,
वक्त और तजुर्बे की मोटी चादर
जम गई है मेरे चारों ओर
कि जिसके बाहर ही रह जा
रही हैं ये बच्चों की खुशियां
करता हूं पुरजोर कोशिश
कि शामिल हो सकूं उनके साथ
उन छोटी छोटी खुशियों में,
पा सकूं एक टुकड़ा अपने हिस्से की
मुस्कुराहट का।
जैसे कोई अंधा बाप दूसरों से
सुन कर देखने की कोशिश
रहा हो अपने बेटे
की पहली फिल्म
और धीमे धीमे मुस्कुरा रहा हो
देख अपने बेटे को परदे पर
मन की आंखों से।
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