Saturday, August 13, 2022

हीरक जयंती पर स्वर्ण जयंती की यादें

स्वतंत्रता की पचासवीं सालगिरह वर्ष 1997, मैं नवोदय विद्यालय कटिहार में छात्र हुआ करता था। अच्छी तरह से याद है, स्टेंसिल्स की मदद की हमारे हॉस्टल में हरेक दीवार पर जय हिंद, तिरंगा, सारे जहां से अच्छा , मेरा भारत महान जैसे नारे उकेरे गए थे। अभी पच्चीस साल बाद पीछे मुड़ के देखता हूं कि देश कितना बदल गया है। एक बानगी तो यही कि उस भव्य समारोह की सिर्फ स्मृतियां हैं हमारे पास फोटो एक भी नहीं। आज के ज़माने से बहुत अलग थी वो दुनिया। हमने आजादी की पचासवीं वर्षगांठ तक पिज्जा नहीं खाया था। पिज्जा छोड़िए, राजमा और छोले भटूरे और आइसक्रीम भी नहीं खाई थी। हम लोग लाल बर्फ को ही आइसक्रीम मानते थे। चॉकलेट के नाम पर चीनी की उबली गोलियां जिसको लेमन चूस बोलते थे वोही खाई थी। किस्मी टॉफी बार और मोर्टन ही हमारे लिए चॉकलेट हुआ करते थे। डियोडरेंट और परफ्यूम का अंतर पता नहीं था। हम बस सेंट जानते थे जो शादियों में दूल्हे और हमारे म्यूजिक सर लगाया करते थे।कंप्यूटर देखा नहीं था हमने। पक्के से याद नहीं शायद सुना भी नहीं था। मोबाइल फोन हमने फिल्मों तक में नहीं देखा था। 

कुछ चीज़ें अभी बेतुकी लग सकती हैं लेकिन एक बात का खयाल रखना भी जरुरी है कि यह बिहार के एक गुमनाम से जिले के एक स्कूल छात्र के निजी अनुभव हैं। आज़ादी की स्वर्ण जयंती तक हमने जींस नहीं पहनी थी, ब्रांडेड कपड़े क्या होते हैं हमें पता नहीं था। बिसलेरी वाला पानी पीना अभी बाकी था और सोडा से कपड़े धोना सुना था, सोडा पिया भी जाता है, यह पता नहीं था। एसी में कभी नहीं बैठे थे, एसी डब्बे में सफर नहीं किया था। अपनी कार का सपना तक देखना बाकी था, सायकिल चलाना सीखना भी उधार की साइकिल से हुआ था। 

बर्थडे का पता था लेकिन बर्थडे में केक काटना और केक चेहरे पर लगाना होता है पता ना था। वेस्टर्न टॉयलेट पर नहीं बैठे थे और बाटा जूता समृद्धि की निशानी समझा जाता था। नेपाली घड़ियां जिसमें चाभी की जगह बैटरी लगती थी, कुछ लोगों के पास हुआ करती थी। चाइनीज घड़ियां, रेडियो और कैमरे नेपाल के रास्ते स्मगलर लोग लाया करते थे। बॉबी देओल स्टाइल आइकन हुआ करते थे जिनकी फिल्म गुप्त की चर्चा हर तरफ थी। अमिताभ बच्चन तब तक भी अपने आप को बूढ़ा मानने को तैयार ना थे और मृत्युदाता जैसी फिल्में कर रहे थे। 

गिनती करते करते थक जाऊंगा लेकिन शायद आज के बच्चों को पच्चीस साल पुरानी दुनिया का अहसास नहीं करवा पाऊंगा। यकीन मानिए, हमारा देश बहुत आगे बढ़ा है स्वर्ण और हीरक जयंती के बीच। सफर बहुत बड़ा है। ईश्वर की दया से अगर स्वस्थ रहा और आज़ादी की सौवी वर्षगाठ देखने का अवसर मिला तो एक सेवानिवृत वृद्ध की तरह आजादी की पचासवीं और पचहत्तरवी वर्षगाठ को याद करूंगा। पक्का यकीन है कि जिस तरह आज बैठकर यह अंदाज लगाना तक कठिन है कि 2047 में दुनिया कैसी होगी, 2047 में यह यकीन करना भी मुश्किल होगा कि 2022 में दुनिया ऐसी थी। 

आप सबको आज़ादी के अमृत महोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं। जय हिंद।🙏

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