गुरुत्वाकर्षण का बल हमेशा हर किसी को नीचे खींचता रहता है। कोई वस्तु उपर जा रही है तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसपर गुरुत्व के बल ने काम करना बंद कर दिया है, इसका अर्थ यह है कि वस्तु ने गुरुत्वाकर्षण बल के अधिक बल विपरीत दिशा में लगा कर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को अस्थाई रूप से प्रभावहीन बना दिया है। लेकिन यह प्रभाव अस्थाई ही है क्योंकि हर उपर जा रही वस्तु पर भी उसे नीचे खींचने वाला बल सतत रूप से लगा रहता है। गुरुत्व का बल को लगातार हराना पड़ता है, हर पल हराना पड़ता है, क्योंकि हर उपर जा रही वस्तु पर नीचे लाने वाले ताकतें हमेशा लगी रहती हैं।
ऊपर ले जाने वाला बल थक जाता है, नीचे खींचने वाला बल कभी नहीं थकता। ऊपर जाना उद्यम है और नीचे गिरना अंतिम नियति। उत्थान उद्यम है और पतन नियति। उद्यम से नियति को टाल सकते हैं , बदल नहीं सकते। लेकिन नियति से लड़ना ही पुरुषार्थ है, जीवन है, नियति के आगे विवश हो जाना ही तो मृत्यु है, अंतिम पतन है। ऐसा पतन जिसके बाद कोई उठता नहीं। पतन स्वाभाविक प्रक्रिया है, उसके लिए बल नहीं लगाना पड़ता, उत्थान स्वाभाविक नहीं है, उसके लिए बल लगाना पड़ता है। जिस दिन उत्थान का प्रयास कम हो जाता है, पतन की जीत का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। यह नियम सबके लिए शाश्वत है चाहे व्यक्ति हो, वस्तु हो, कोई संस्था हो , या साम्राज्य हो या नैतिक चरित्र, सबके लिए पतन स्वाभाविक है, शाश्वत नियति है । जग में वोही महान रहा है जिसने अपने उद्यम, संयम, प्रयास से पतनकारी शक्तियों को लगातार पराजित किया है। अपने प्रयास , उद्यम, संयम को बनाए रखें, पतन को पराजित करने की कोई और युक्ति नहीं है।