Wednesday, May 28, 2025

सस्ता और घटिया

अक्सर लोग सस्ता और घटिया को एक समझ लेते हैं। अरे उसने एक सस्ती सी कमीज पहन रखी थी। तुमने उसके जूते देखे? हुंह... सस्ते वाले फुटपाथ वाले जूते। इन वाक्यों में कमीज और जूते के प्रति अनादर का भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित है। मानो न केवल जूतों और कमीज वरना उसे पहनने वाले को भी घटिया कहा जा रहा हो। वैसे अगर सस्ता और घटिया एक ही शब्द है फिर दो शब्द बनाने की जरूरत क्यों पड़ती। "सस्ता" शब्द "सह" (साथ) + "स्थ" (स्थिर या रहने वाला) से आया माना जाता है, जिसका अर्थ होता है – जो साथ रह सके अर्थात जिसकी कीमत इतनी कम हो कि हर कोई उसे साथ रख सके। जो आपके साथ स्थिर रहे, अच्छे बुरे वक्त में आपका साथ दे, वही सस्ता है। सत्तू सस्ता है इसीलिए जब आप बीमार पड़ते हैं तब भी आपके साथ बना रहता है, बिरयानी और पुलाव महंगे हैं इसलिए आपको एक छींक आई नहीं, एक दस्त हुआ नहीं, आपका साथ छोड़ देते हैं। घटिया शब्द घाटा या घटना से बना है। वह वस्तु जो आपको घाटा करा सके या या आपमें से कुछ घटा ले, वो घटिया है। इस लहजे से देखें तो महंगी चीजें आपका ज्यादा घाटा कराने की क्षमता रखती हैं। मतलब यह कि महंगी चीजें भी घटिया हो सकती हैं। आप कहेंगे कि सस्ती चीजें भी तो घटिया हो सकती हैं, हां सस्ती चीज तो वह ही हुई जो आपके साथ स्थिर रहे, आपका साथ दे तो ऐसी चीजें तभी घटिया हो सकती हैं अगर उनका मकसद घाटा करवाना ही हो। अब बीड़ी पीने वाले बीड़ी को गाली नहीं दे सकते कि हमारे फेफड़े जला दिए, उसका काम फेफड़ों को ठीक करना थोड़े न था। बीड़ी सस्ती है और घटिया भी। सिगरेट महंगी भी है और घटिया भी। ज्यादा बुरा कौन हुआ , आप ही बताओ। 
चीजें सस्ती होनी चाहिए, तभी वह आपको मूल्यवान लग सकती हैं। या तो चीजें इतनी मूल्यवान हों कि कितनी भी कीमत दे दो आपको सस्ता लगे। किसी अनाथ बच्चे को मां वापस करने के लिए कोई भी कीमत सस्ती है। फिर आप क्या कहेंगे, बच्चे के लिए मां सस्ती हो गई। अगर कोई चीज आपको महंगी लग रही है, मतलब है कि आपको कीमत अखर रही है। पैसे ,समय, रिश्ते, प्रतिष्ठा गंवा कर आपने चीज तो हासिल कर ली लेकिन आपको मूल्य नहीं मिल रहा। 

हमारी सोच ऐसी बन गई है कि हम ‘दाम’ को ‘दरजा’ मान बैठते हैं। यह सोच न केवल हमारे सामाजिक व्यवहार में बल्कि देशों की नीतियों में भी झलकती है। अब देखिए पाकिस्तान को ही—उसने चीन से महंगे दामों में एयर डिफेंस सिस्टम खरीदे। झकास पैकेजिंग, चमचमाता लुक और चीनी इंजीनियरों की मुस्कान के साथ सिस्टम आया तो जरूर, पर हुआ क्या? एक कबूतर उड़ा और रडार ने उसे एफ-16 समझ लिया, फिर खुद ही कन्फ्यूज हो गया और सिस्टम हैंग हो गया। इतना महंगा सिस्टम, लेकिन काम घटिया। अब पाकिस्तान कहेगा कि सिस्टम ने साथ नहीं दिया। अरे भई, जो साथ ना दे वो तो सस्ता हो या महंगा—घटिया ही कहलाएगा न!
तो बात साफ है—मूल्य साथ निभाने से आता है, कीमत से नहीं। जो वस्तु, विचार या व्यक्ति आपके साथ खड़ा रहे, अच्छे-बुरे वक्त में टिके रहे, वही मूल्यवान है। चाहे वो सत्तू हो, पुराना दोस्त हो, मां हो या कोई देश की नीति। इसलिए अगली बार जब आप कुछ खरीदें, अपनाएं या अपनाएं जाने का दावा करें, तो कीमत से पहले यह देखिए कि उसमें ‘सह स्थ’ है या ‘घाटा’। वरना ऐसा न हो कि महंगे सौदे में आपकी ज़िंदगी ही सस्ती पड़ जाए।


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