Friday, January 20, 2023

सुख दुख और खिचड़ी

बचपन की हिंदी कक्षाओं में पर्यायवाची शब्दों की श्रृंखला याद करना एक कठिन कार्य होता था। ऐसे में आकाश शब्द के पर्यायवाची शब्दों की सूची में एक पर्यायवाची शब्द होता था ख। सिर्फ एक वर्ण का पर्यायवाची। याद करने में आसान इसलिए हमेशा याद रहता। कभी कभी लगता था कि शायद प्रकाशक द्वारा कोई गलती हो गई है , ख का अर्थ आकाश कैसे हो सकता है, जरूर कोई और शब्द होगा जिसकी जगह एक अधूरा शब्द ख छप गया है। 

बाद में हमारे शिक्षक ने बताया कि ख से तात्पर्य होता है रिक्त स्थान। इसीलिए आकाश या अंतरिक्ष को ख कहा गया है। इसी ख से खेचर शब्द बना है जिसका अर्थ है आकाश में विचरण करने वाला अर्थात् पंछी। बाद में कुछ सोचने पर देखा कि शब्द खाली, खतम भी ख मूल शब्द से बने हैं। जिसका अर्थ रिक्तता से है। 

इसी ख शब्द में उपसर्ग दु या सु लगने से दुख और सुख शब्द बने हैं।दु उपसर्ग बुरा और सु उपसर्ग अच्छा का अर्थ रखते हैं। जैसे सुपुत्र का मतलब हुआ अच्छा बेटा और दुरात्मा का अर्थ हुआ बुरा व्यक्ति। अगर यह सही है तो दुख का शाब्दिक अर्थ हुआ बुरा खाली स्थान और सुख का शाब्दिक अर्थ हुआ अच्छा खाली स्थान। 

आखिर दुख का अर्थ बुरा खाली स्थान से कैसे है? शब्दों की उत्पत्ति का अध्ययन आपको इतिहास , साहित्य, अध्यात्म और आपको न जाने कितने विषयों का आस्वादन करवा पाने में सक्षम है। दुख और सुख शब्द में प्रयुक्त ख का तात्पर्य पहिए के बीच बने खाली स्थान से है, जिससे पहिए की धुरी जुड़ी रहती है। प्राचीन काल में जब बैलगाड़ी ही यात्रा का साधन हुआ करता था और सड़कें कच्ची ऊबड़ खाबड़ हुआ करती थीं तो यात्रा का अनुभव का अनुभव बहुत अच्छा नहीं हुआ करता होगा। एक तो रास्ता खराब उपर से अगर बैलगाड़ी के पहिए ठीक के ना घूमें तो यात्रा और भी कठिन हो जाती थी। अगर गाड़ी की धुरी और पहिए के रिक्त स्थान सही से जुड़ा है तो गाड़ी सही चल सकती थी और गाड़ी में बैठे लोगों को आराम रहता था। हमारे पूर्वजों ने अपनी गाड़ियों की धुरी और पहिए के कारण यात्रा के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर सुख और दुख शब्दों की रचना की थी। बाद में दुख और सुख शब्दों के अर्थ में और विस्तार होता गया और यह शब्द हमारे सनातन, बौद्ध और जैन दर्शन में एक महत्वपूर्ण संकल्पना बन गया। 

शब्दों के मूल अर्थ और उनके विस्तारित अर्थ में कितना अंतर हो सकता है इसका एक और उदाहरण है शब्द दूर्वाक्षत। बिहार में खास कर मिथिला समाज में पूजा संपन्न होने के बाद दूर्वाक्षत मंत्र पढ़ा जाता है और सर्व समृद्धि की शुभकामना सहित नौनिहालों पर चावल और हरी दूब या घास छिड़का जाता है। प्राचीन काल में मानव की समृद्धि के दो ही पैमाने थे। एक मानव के लिए पर्याप्त अन्न हो और दूसरा उनकी गायों और पशुधन के लिए पर्याप्त घास उपलब्ध रहे। इसीलिए दूर्वा और अक्षत को समृद्धि का चिह्न माना कर दूर्वाक्षत मंत्र के साथ आशीर्वचन कहे जाते हैं। 


चूंकि बात ख से शूरू हुई थी तो ख से खिचड़ी शब्द की उत्पत्ति के बारे में जान लेते हैं। खिचड़ी शब्द खेचरान्न शब्द का बदला रूप प्रतीत होता है जिसका अर्थ हुआ चिड़िया के लिए अन्न। चूंकि पंछी उड़ते भटकते जो अन्न मिले उनको ग्रहण कर लेते हैं इसीलिए उनके भोजन में चावल दाल सब मिला हुआ हो सकता है। संभवतः खिचड़ी शब्द भी खेचरान्न से ही निकला है।

 ख की खासियतों का खिस्सा अभी खत्म नहीं हुआ है, और भी खुलासे बाकी है, लेकिन फिर कभी। तब तक शब्बा खैर।।

2 comments:

majdoorsk said...

भाषा पर आपकी पकड़ अविस्मरणीय है।
नमस्कार

Shekhar Suman said...

नमस्कार। आलेख पढ़ने और आपकी टिप्पणी के लिए आभार।