आज तक मैंने किसी मछली को तालाब में पॉलिथीन या कचरा फेंकते नहीं देखा। ना ही किसी तालाब में मछली अपने गंदे कपड़े धोती है। शायद ही किसी मछली का घर का गंदा नाला किसी तालाब में गिरते देखा है। फिर मछली पूरे तालाब को गंदा कब से करने लगी।
बात बस इतनी है कि मछली को बोलना नहीं आता। जो बोल नहीं सकता, उसको कुछ भी कहा जा सकता है। मछली ना जल की रानी है और न ही वो तालाब को गंदा करती है। सब बस कहने की बातें हैं क्योंकि कहने वालों को कुछ कहना होता है । और जिन्हें सिर्फ बोलना और कहना होता है वो अक्सर अपनी पिछली बातें भूल जाते हैं और कुछ भी कह जाते हैं। सोचिए, अगर मछली बोल सकती तो क्या कहती इन बोलने वालों के प्रति। हां अगर अगली बार कोई गंदा तालाब दिखे तो उसको गंदा करने वाली मछली ढूंढने के बदले एक आईना ढूंढिए, शायद आपकी खोज मुकम्मल हो जाय।
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