Wednesday, August 18, 2021

लोकतंत्र एक जीवन मूल्य

लोकतंत्र एक शासन प्रणाली से ज्यादा एक जीवन मूल्य है। और मूल्य अमूर्त होते हैं। मूर्त चीजों जैसे चुनाव, सरकार, प्रधानमंत्री, संसद एक सब के होते हुए भी लोकतंत्र नहीं हो सकता है। पाकिस्तान हमारे सामने ऐसा ही एक उदाहरण है। कहने को वहां पर लोकतंत्र के समस्त किताबी गुण मौजूद हैं लेकिन लोकतंत्र अनुपस्थित है। मानो शरीर तो है लेकिन मृत। लोकतंत्र का जीवन मूल्य वहां के नागरिकों को अपने आप आत्मसात करना पड़ता है। लोकतंत्र सुलभ सहिष्णुता, दूसरों के अधिकारों का सम्मान और अपने कर्तव्यों के बोध के सम्मिश्रण से ही यह जीवन मूल्य धीरे धीरे पोषित होता है। इसी को लोकतंत्र की जड़ें गहरी होना कहा जाता है। संस्थाओं का सम्मान भी लोकतंत्र के इस मूल्य का एक अहम अंग है। 

कोई भी बाह्य शक्ति हथियारों के बल पर या जबरन चुनाव करवा कर कहीं भी लोकतंत्र स्थापित नहीं कर सकता। अगर ऐसा प्रयास किया भी जाए तो यह अस्थाई ही होगा। जैसे ही बंदूकों का आवरण हटेगा लोकतंत्र का शामियाना लोकतंत्र विरोधी हवाओं में उड़ जाएगा। जब तक जनता लोकतंत्र में विश्वास कर लोकतांत्रिक तरीकों से ही अपने भविष्य का निर्माण करने को कृतसंकल्प नहीं होती, लोकतंत्र की स्थापना का हर प्रयास अफगानिस्तान की तरह असफल होगा। 

यह मानना कठिन है कि बिना आम जनता के सहयोग के तालिबान की शक्ति और मनोबल न केवल बना रहा बाकी दो दशकों बाद यह अपने सार्वकालिक उच्चतम स्तर पर है। जब तक अफगानी जनता माध्यकालिक शासन प्रणालियों और उसके नव युगीन प्रवर्तकों का खुल कर विरोध नहीं करेगी, उनका प्रारब्ध कमोबेश यही रहेगा। हां स्थिति उतनी भी निराशापूर्ण नहीं है जितनी अभी दिखती है। तालिबान भले ही बंदूक से सत्ता पर काबिज हो जाएं , प्रशासन उनके बस का नहीं लगता। जनता की सामूहिक शक्ति और इच्छा शक्ति के आगे बड़े बड़े तानाशाह ध्वस्त हुए हैं। अरब स्प्रिंग उसका सबसे ताजा उदाहरण है।

आशा है कि अफगानी जनता में यह चेतना फैले और वो भी एक आधुनिक समाज की तरह अपने भविष्य निर्माण का बेड़ा स्वयं उठाए। बाहरी शक्तियों के भरोसे उनका कल्याण उतना ही कठिन है जितना कृत्रिम सांस देकर डोडो के जीवश्म को जिंदा करना।

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