Thursday, February 27, 2020

गलती दोनों की है

गलती दोनों की है। नुकसान दोनों का हुआ है। मानता हूं कि तुम्हारा सर फूटा , लेकिन तुम्हारे खून के छीटों से उसकी नई कमीज़ जो खराब हुई उसका क्या। तुम्हारा घाव तो आज कल में ठीक हो जाएगा, शर्ट के दाग़ कभी नहीं जाएंगे। सब झूठ दिखाते हैं सर्फ एक्सेल के विज्ञापन में। दाग़ नहीं जाते। उसके नुकसान का भी सोचो। उसने तुम्हें मारा तो तुमने भी तो पुलिस में जाने की धमकी दी। धमकी देना बुरी बात है ना। यही सिखाया गया है तुम्हें कि तुम दूसरों को धमकी देते फिरो। यह तो सहिष्णुता नहीं हुई। सहिष्णु बनो। अपनी गंगा जमनी तहज़ीब का मान रखो। और हां जिस जिस ने कानून तोड़ा है उन सबको सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। 

अरे  तुम्हारे सर से अभी भी खून बह रहा है। चलो भागो यहां से।  मेरे सोफे का कवर भी खराब कर दिया। निकलो, बाद में आना। अभी मुझे अमन-की-आशा के मुशायरे में जाना है। डार्लिंग अगली बार यह लोग आएं तो कह देना कि मैं घर पर नहीं हूं।

Thursday, February 13, 2020

तुम मानोगे नहीं, खा के ही रहोगे

प्यार वाली फिल्में देखो, प्रेम रस वाली कविता पढ़ो तो वही रोमानी दुनिया दिखती है। प्यार में कुछ ऐसा हो जाता है कि रात आंखों में ही कट जाती है। एक एक पल काटना मुश्किल हो जाता है। आप पूरी दुनिया से कट जाना चाहते हैं, किसी निर्जन टापू पर आप हों और आपका प्यार हो। आप गुनगुनाते रहें। हंसते हंसते कट जाएं रास्ते, जिंदगी यूं ही कटती रहे।

प्यार में कटने और काटने का खेल लगा ही रहता है।  प्यार शब्द को ही देख लीजिए। यार से मिलने के चक्कर में प बेचारा पहले कटता है। अगर ना कटे तो पयार हो जाएगा, प्यार थोड़े ना होगा।

समस्या यह है कि जिनको प्यार हुआ सिर्फ उनका कटे तो समझ में भी आये। किसके चक्कर में किसका कट जाए, कहना मुश्किल है। प्यार हुआ शाहजहां को , हाथ कट गए कारीगरों के। गुस्ताखियां भले ही आंखें करें, कट जाती है बेचारी हाथ वाली नस। इंसान तो इंसान, कुदरत की भी खैर नहीं। हमारे मांझी बाबा के प्यार के चक्कर में बेचारा पहाड़ भी नहीं बचा। कट कर रह गया और लोग ताली पीट रहें हैं कि प्यार हो तो ऐसा। भाई, पहाड़ की क्या गलती थी। पर आपको समझ नहीं आएगा।

कंपनियों ने इस प्यार के चक्कर में पचास तो डे बना रखे हैं।  रोज डे, केक डे, चॉकलेट डे। सारे डे मना के आप की हालत हो जाती है हम दिल दे चुके सनम और तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही। और उधर सारे गिफ्ट लेने के बाद अभी भी वही हाल है कि सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं ।डे डे के चक्कर में पैसे दे दे कर जब आपका बैंक बेलेंस कट कर आधा हो जाए तो साला याद आता है कि हग डे तो अभी बाकी ही है। आप घबरा कर अपनी पतलून चेक करते हैं तो पता चलता है कि हो गया हग डे सेलिब्रेट। पतलून से निकला आपका दुबला पर्स जिसकी मोटाई पहले से भी आधी रह गई है, रोता रहता है कि नहीं अब मुझसे कुछ ना निकालो। रोता भी ऐसे है जैसे किसी की दूसरी किडनी निकाली जा रही हो वह भी बिना बेहोश किये। उसको क्या पता कि प्यार के चक्कर सबका कटता है। प्यार मिलने के लिए जरूरी है अच्छी पर्सनालिटी। और ऐसा है कि पर्सनालिटी शुरू ही होता है पर्स से। नो पर्स नो पर्सनालिटी। 

सारे डे मना कर आप सोचते हो कि शायद कोई नाइट भी आयेगी। शास्त्रों में लिखा है कि डे बाद नाइट आती है। लेकिन यह ऐसा कलयुग है कि 100 में 99 डे ही मनाते रह जाते हैं, उनकी किस्मत में नाइट कभी नहीं आती। 

सारे डे वाले खेल में सालों काटने के बाद फिर लौट कर आप अपने मां बाप के पास जाते हैं। मम्मा पप्पा ।। आपने जीवन दिया है अब जीवनसाथी भी दो।  अब जीवन में कोई आशा नहीं। किस्मत बुरी हुई तो पता चलता है कि आप जहां डे प्लेअर रहे , आपका जीवन साथी धुरंधर डे नाइट प्लेअर रह चुका है।आईपीएल और बिग बैश क्या बांग्लादेश प्रीमियर लीग तक के हर टीम के साथ डे नाइट खेल चुका है। गोवा , अंडमान और फुकेट तो उनका पहले से कंप्लीट है, आपसे आशा है कि यूरोप से नीचे कुछ नहीं। दोनों किडनी तो आपकी पहले ही निकल चुकी और अब जो आपके नाम पर बिल फट रहें हैं उसको देख कर आपका बचा खुचा दिल भी निकल जाता है। ज़ालिम दुनिया फिर भी कहेगी उसने तो प्यार के चक्कर में दिलोजान निछावर कर दिया। अब आप को समझ आता है कि प्यार को दिलोजान देना क्यूं कहते हैं।

और क्या लिखूं? लिखने को सारे जहां की बातें हैं लेकिन उसको लिखने और पढ़ने लगे तो आपका डे बर्बाद हो जाएगा। जाइए डे मनाइए, बस नाइट की आशा मत रखिए। भगवान कृष्ण ने भी गीता में यही कहा था कि डे मनाओ और नाइट की इच्छा मत रखो। यही गीता का सार है। 

और अगर आपको यह वाली फीलिंग आ रही है कि क्या बकवास चल रहा है। मेरी कहानी अलग है, मेरा नहीं कटेगा। सॉरी टू ब्रेक योर बबल बट आपका आलरेडी कट चुका है। द ग्रेटेस्ट  ट्रिक डेविल एवर पुल्ड वाज कन्विंसिंग द वर्ल्ड ही डिड नोट एग्जिस्ट।  लेकिन मुझे पता है आप मानोगे नहीं । जी तो चाहता है कि फिल्म छिछोरे का वह डायलॉग कहूं  जब हीरो हॉस्टल 4 में एडमिशन लेने के लिए बेताब  हो रहा है और क्लर्क कहता है कि तुम मानोगे नहीं, खा के ही रहोगे। ठीक है जाओ, हम इधर ही मिलेंगे। यह कोई संयोग नहीं है कि तुम्हारे प्यार की सबसे बड़ी निशानी ताजमहल और सबसे बड़ा पागलखाना एक ही शहर में है।
 लेकिन दिन ही ऐसा है कि ऐसा कह नहीं सकता। इसलिए हैप्पी वैलेंटाइन्स डे।

Friday, February 7, 2020

body shaming and us

We call our god Lambodar which means one with large belly. Our sage were named Ashtavakra means who were deformed in eight organs. Bhagwan Krishna derives his name from his dark skin and his muse was called Kubja. Demon was called Shoorpnakha means the one with large nails. Our superstar is called Lambu ji. Everyone has a friend nicknamed Chasmis, Motu and Chhotu. Lady were named based on their body odour and called matsya-gandha. We called our tormentors Firangi, a name which was again based on their skin colour. Even good names like mrig-nayni, kamal-nayan, karpur-gauran are based on physical appearance. Mahadevi called her cow Gaura, And Chaintnya Mahaprabhu was called Gaurango. 

Examples are numerous. Point is that we have lived with it and it is a part of us. Either you accept it and stay happy as we have been so far. Or call it body shaming like westerners and keep getting offended. Choice is yours.

Thursday, February 6, 2020

कोरॉना वायरस से बचाव

चीन वाले कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क पहनना जरूरी है। चीन से आने वाले हरेक यात्री पर नजर रखी जा रही है। फिर भी आप मास्क पहने बिना बाहर ना निकलें। थोड़ी सी सावधानी और आप अपना बचाव कर सकते हैं। बस समस्या इतनी है कि बचाव वाले मास्क भी चीन से बन कर आते हैं। 

निष्कर्ष यह कि हनुमान चालीसा का सुबह शाम पाठ करें और अपनी पानी पूरी और खोमचे वाले की पापड़ी चाट वाली डायट बनाए रखें।

Sunday, February 2, 2020

वाराणसी यात्रा वृतांत

यह राजा घाट है, घातक सिनेमा में सनी देओल यहीं से नहा के निकलते हैं। आपने देखी है वो फिल्म? नाविक हरेक घाट के बारे में सही गलत ऐतिहासिक कल्पोक कल्पित कथाएं बड़े चाव से सुना रहा है। यह हरिश्चंद्र घाट है। राजा हरिश्चंद्र  इसी घाट पर चांडाल का काम करते समय अपने मृत पुत्र रोहिताश्व के अंतिम संस्कार के लिए भी अपने आदर्शो से नहीं डिगे। पता नहीं यह कहानी नाविक ने कितने लोगों को आज तक सुनाई होगी लेकिन यह मार्मिक कहानी सुनाते समय उसकी आखों के कोनों पर नमी दिखने लगती है। चलिए संध्या आरती का समय हो रहा है, जल्दी से आपको बाकी घाटों की परिक्रमा करवा देता हूं। दशाश्वमेध से शुरू हुई यह नौका यात्रा मणिकर्णिका तक पहुंचती है। जिस नाविक की आखें हरिश्चंद्र की कहानी सुनाते समय गीली हो गई थी, मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ को देख उसपर कोई असर नहीं। वाराणसी ही वह शहर हो सकता है जहां मृत्यु पर शोक नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्ति का उल्लास होता है। जीवन समाप्त नहीं होता बल्कि इहलीला के बाद के जीवन का प्रारंभ होता है। मणिकर्णिका पर शिव पार्वती ने स्नान किया था अतः यहां के जल से अंतिम स्नान कर बैकुंठ निश्चित है। आस्था और श्रद्धा के आगे नमस्तक हो हम आगे चले।

दशाश्वमेध धाट हमने सुबह भी देखा था, काशी विश्वनाथ के दर्शनों से पहले इसी घाट पर आये। बाबा विश्वनाथ के दर्शनों से पहले पुष्प और प्रसाद खरीदना आवश्यक हो जाता है। आशा यही कि बाबा भोलेनाथ पुष्प और प्रसाद पा खुश हो जाएं और उनका ध्यान हमारे पापों की गठरी पर ना जाए। भोलेनाथ की काशी में हर तरफ बाबा का ही साम्राज्य है। हर चीज पर बाबा का प्रभाव है , धूनी रमाते साधु हों या गांजा के चिलम से काश लगाते विदेशी या ठंडाई छानते काशीवासी। कभी कभी सच ही लगता है कि काशी बाबा के त्रिशूल पर है, जीवन और दुनिया के साधारण नियम यहां लागू नहीं होते। 

घंटे दो घंटे कतार में खड़े रहे और हर हर महादेव का जयकारा लगता रहा। ललाट पर भभूत लगाए जब बाहर निकले तो भूख तेज़ लगी थी। मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद है कि काशी में कोई भूखा नहीं रहता। बनारस की गलियों में हर तरफ बनारसी जायके की सुगंध आपको बताती है कि अन्नपूर्णा का आशीर्वाद विफल ना हो, इसकी कितनी उन्नत व्यवस्था की गई है। आप आराम से जलपान कर सकते है, समय और मात्रा की कोई पाबंदी नहीं। पूरियां बांटने वाला गिन कर पूरियां नहीं बांटता। जितनी सखुवे के दोने में आ गई सब आपकी। गरमागरम पूरी , आलू की मसाले दार सब्जी और चाशनी में डूबी जलेबी छक कर हम आगे बढ़े।

काशी विश्वनाथ की गलियों में हमें एक दुकान मिली लकड़ी की । कारीगरी देख कर सीना चौड़ा हो गया और दुःख भी हुआ कि प्लास्टिक ने हमारे पर्यावरण को जितना नुकसान पहुंचाया है उससे कहीं अधिक लकड़ी और उसकी कारीगरी को पहुंचाया है। कौन खरीदेगा यह महंगी लकड़ी जब प्लास्टिक कहीं ज्यादा सस्ती है। लेकिन बाबा की नगरी में सब कुछ इतना सीधा और सपाट कैसे हो सकता है। चीज़ों के दाम प्लास्टिक से सस्ते और ऐसी कारीगरी की मोम से भी मुश्किल से हो। यादगार की लिए कुछ चीजें खरीदी यह सोच कर कि अगले बार सामान एक अलग थैला इनके सामानों से ही भरूंगा। इसके बाद गंगा आरती का अप्रतिम दृश्य देखा। आरती की उठती पवित्र अग्नि की लौ और उनको चतुर्दिश घुमाते युवा पंडितों के प्रदीप्त चेहरों को देख विश्वास हुआ कि हमारी सनातन संस्कृति को कोई मिटा नहीं सकता। यह ज्योति अखंड रूप से भारतवर्ष की भूमि को प्रकाशित करती रहेगी और मंत्रोच्चार के बीच उठता यह पवित्र धुआं हमारे मनोमस्तिष्क को सुवासित करता रहेगा।

बच्चे थक रहे थे, इसीलिए संध्या आरती के बाद रात को होटल में लौट गए। होटल  भी बिल्कुल घाट किनारे। टैक्सी कुछ दूर ही रुक गई और अपने  रैन बसेरे तक पहुंचने के लिए हम बनारस की उन मशहूर गलियों से गुज़रे जिनसे भौतिक दुनिया की बड़ी कारें नहीं गुजर सकती। मानो भौतिकवाद की नो एंट्री है बनारस की गलियों में। आपके बड़े ईगो का भी गुजरना मुश्किल है बनारस की गलियों से। जहां गर्व से आपने अपना सर ऊंचा किया और ज़मीन से नज़रें हटाई और औंधे मुंह गिरेंगे फिसल कर सांढ़ के गोबर पर। इसलिए आंखें नीचे किए बनारस की तंग गलियों से हम अपने होटल पहुंचे। 

बनारस की सुबह देखने चटपट जा पहुंचा घाट पर। वहीं राजा घाट जहां पर घातक फिल्म की शूटिंग हुई थी। हनुमान मदिर के बाहर गदा घुमाते बनारस के युवा मिले जो अपनी रोजाना वर्जिश कर रहे थे। घातक फिल्म का काशीनाथ कोई काल्पनिक चरित्र नहीं था, इन युवकों को देख यह विश्वास हो गया। गदा के साथ फोटो लेने का लोभ संवरण ना कर पाया। उसके बाद गंगा में डुबकी लगा कर बाहर निकला तो लगा जैसे मनों बोझ उतर गया हो। वरुणा और असी की जलधारा गंगा के पतितपावन वाले भगीरथ कार्य में उनका सहयोग करती हैं। नाम वाराणसी भी वरुणा और असी से मिलकर ही बना है।

काशी के मानस मंदिर और संकट मोचन मंदिर को सुबह देख कर हम चल पड़े सारनाथ की ओर। भगवान बुद्ध की प्रथम शिक्षा वाली पावन धरती का दर्शन करना आवश्यक था। सारनाथ जाकर देखा तो सैकड़ों तिब्बती, थाई और चीनी नागरिक वहां मौजूद थे। मन में विचार आया कि धर्म प्रसार तो बुद्ध ने भी किया और पूरी दुनिया में किया लेकिन बिना तलवार के और बिना किसी  को लोभ दिये। बुद्ध की 90फीट की आजनुबाहु प्रतिमा और बुद्ध की ध्यानमग्न मुद्रा आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। जिसकी प्रतिमा इतनी आकर्षक है वह व्यक्ति वास्तव में कैसा रहा होगा, सोचना भी असंभव है।  चौखंडी और धमेक स्तूप के दर्शनों के बाद हमने स्थानीय बुनकरों की दुकान का रुख किया। 
पत्नी जहां साड़ियों के संसार में मग्न हो गई मैं दुकान के पीछे बने उनकी कार्यशाला में गया। बुनकर चाचा ने मेरे बेटे को प्यार से पास में बिठाया और उसे भी अपने कारीगरी के गुण सिखाए। फणीश्वनाथ रेणु के सिरचन याद आ गए। सामने एक मजदूर नहीं एक कलाकार बैठा था। काम में बाधा पहुंचाने वाले बच्चों से कोई इतनी तन्मयता से कोई सहृदय कलाकार ही बात कर सकता है। फोटो लेने की आवश्यक खानापूर्ति समाप्त होने के बाद चुपके से सिरचन चाचा के हाथ में सौ रुपए का एक नोट थमाया और उन्होंने मना किया। मैंने कहा चाचा कुछ खा लेना। कलाकार ह्रदय ने भावना से पूरित हो आशीर्वाद मुद्रा में हाथ उठा दिए। लगा मानो फिर से काशी में गंगा स्नान हो गया।

कलाकार का ह्रदय भले ही कोमल हो समय हमेशा कठोर होता है। घड़ी बताने लगी कि स्वप्न संसार से निकलने का समय आ गया है। ऑटो में बैठ कर हम वाराणसी स्टेशन पहुंचे और वंदे भारत एक्सप्रेस में बैठ कर आध्यात्मिकता, भावुकता के संसार से आधुनिकता और वैज्ञानिकता के अजूबे की सराहना करने लगे। ट्रेन दिल्ली के लिए खुल चुकी थी कि स्टेशन की दीवार पर एक पेंटिंग दिखी।लिखा था स्मार्ट सिटी वाराणसी: अलौकिक आध्यात्मिक आधुनिक। मानो पूरी यात्रा का सार इन्हीं तीन शब्दों में सिमट आया। वाराणसी से प्रयागराज की यात्रा के बीच चटपट यह वृतांत लिख डाला , कौन जाने दिल्ली पहुंच कर यह सुकून का भाव रहे ना रहे , हृदय प्रसन्नचित मन रहे या ना रहे।