Tuesday, January 29, 2019

क्षुधा और अस्थि

क्षुधा से त्रस्त पशु एक सूखी अस्थि को भी भोजन मान बैठता है। वही सूखी हड्डी पशु के  लालायित जिह्वा और मुख को घायल कर डालती है। घायल मुख से रिसता रक्त पशु को हड्डी से आता प्रतीत पड़ता है। अपने ही रक्त को भोजन मान और अपनी सिद्धि समझ पशु अस्थि के टुकड़े पर और जोर से जिह्वा के प्रहार करने लगता है। और प्रहार और ज्यादा रक्त प्रवाह ,पशु उत्तरोत्तर हड्डी को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन समझ लेता है। जबकि सत्य यह है कि सूखी अस्थि उसके स्वयं के विनाश का कारण है। जब तक पशु उस अस्थि का लोभ नही त्यागता, न वो असली भोजन की तलाश में जाता है और ना ही वास्तविक पोषण प्राप्त कर पाता है। यह अलग बात है कि उस हड्डी पर कभी मांस लगा हुआ था जिसे खाकर किसी पशु की क्षुधा मिटी होगी, लेकिन इतिहास कुछ भी रहा हो, इसका वर्तमान की इस वास्तविक स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं होता।

पशु को अगर सद्बुध्दि आ जाये तो वो उस हड्डी को समय रहते  छोड़ डालता है और इसी से उसके प्राण बचते हैं। अन्यथा अपना ही रक्त पीकर कोई कब तक जिया है।

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