Tuesday, January 29, 2019

क्षुधा और अस्थि

क्षुधा से त्रस्त पशु एक सूखी अस्थि को भी भोजन मान बैठता है। वही सूखी हड्डी पशु के  लालायित जिह्वा और मुख को घायल कर डालती है। घायल मुख से रिसता रक्त पशु को हड्डी से आता प्रतीत पड़ता है। अपने ही रक्त को भोजन मान और अपनी सिद्धि समझ पशु अस्थि के टुकड़े पर और जोर से जिह्वा के प्रहार करने लगता है। और प्रहार और ज्यादा रक्त प्रवाह ,पशु उत्तरोत्तर हड्डी को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भोजन समझ लेता है। जबकि सत्य यह है कि सूखी अस्थि उसके स्वयं के विनाश का कारण है। जब तक पशु उस अस्थि का लोभ नही त्यागता, न वो असली भोजन की तलाश में जाता है और ना ही वास्तविक पोषण प्राप्त कर पाता है। यह अलग बात है कि उस हड्डी पर कभी मांस लगा हुआ था जिसे खाकर किसी पशु की क्षुधा मिटी होगी, लेकिन इतिहास कुछ भी रहा हो, इसका वर्तमान की इस वास्तविक स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं होता।

पशु को अगर सद्बुध्दि आ जाये तो वो उस हड्डी को समय रहते  छोड़ डालता है और इसी से उसके प्राण बचते हैं। अन्यथा अपना ही रक्त पीकर कोई कब तक जिया है।

सौन्दर्यजनित भाव

प्रेम का आधार सौंदर्य है। सौंदर्य की उर्वर भूमि से ही पोषण पा प्रेम की बेल लहलहाती है। सौंदर्य वह है जो आपको बिना कुछ दिए ही आपको वशीभूत कर ले। सौंदर्य का गुण बाकी सारे अवगुणों पर एक अपारगम्य अपारदर्शक आवरण का कार्य करता है। सौंदर्य एक सार्वभौमिक भाव नहीं है, यह पूरी तरह से वैयक्तिक भाव है। हर एक व्यक्ति के लिए सौंदर्य की अवधारणा और सौंन्दर्य का आधार अलग होगा। सौंदर्य और तर्क का मेल शायद ही होता है। तर्क के जोड़ घटाव से सौंदर्य की माया परे है। तर्क की सीमा जहाँ समाप्त होती है, सौंदर्य की परिसीमा का आरंभ वहीं से होता है। यही वह सौंदर्य है जिस के कारण एक श्याम वर्ण का चरवाहा गोपियों की हृदय में श्रीकृष्ण बन स्थापित होता है। यह सौन्दर्य ही है जो एक अन्वेषक के मन में शहर की सुख सुविधा छोड़ कर अमेज़न की घने वर्षावनों में सहर्ष जीवन व्यतीत करने की अभिलाषा उत्पन्न करता है। सौंदर्य आपको मोह पाश में स्वस्फूर्त बंधने को विवश करता है। यह मनोज सौंदर्य आपको निशस्त्र कर डालता है। आपकी सारी चपलता और चातुर्य धरी की धरी रह जाती है और आपकी समस्त मानसिक शक्तियों पर सौंदर्य का ही आधिपत्य सा हो जाता है। 


 
‌सौंदर्य का एक दूसरा पक्ष भी है। सौंदर्य की विषयवस्तु को अपने सौंदर्य का ज्ञान और इस सौंदर्य जनित प्रेम के वशीभूत दूसरे प्राणी की अवस्था का अहसास शायद ही होता है। दो व्यक्तियों या वस्तुओं में एक दूसरे में सौंदर्य एक समान दृष्टिगोचर हो संभव नहीं है। अगर सौंदर्य की भाव असमान है तो सौन्दर्य जनित अन्य भाव जैसे प्रेम , मोह और आकर्षण असमान ही होगा। यह भी संभव है कि आपके आकर्षण के केन्द्रबिन्दु को आपके हृदय में सौन्दर्यजनित भाव का न ही पता हो न कोई खास मोल।  जैसा कि पहले की कहा गया है कि सौंदर्य तर्क की सीमा से परे है। अपने सौन्दर्य पूरित प्रियवस्तु से बदले में कुछ पाने की लालसा वेदना का कारण बनती है। सौंदर्य की लौ जब तक निराशा के तम का विनाश कर आपमें उत्साह और जीवन ऊर्जा का संचार करे वांछनीय है। यही लौ जब हृदय में कुछ पाने की लिप्सा बन सुलगती है तो विरह का ताप बन जाती है। राम का सौंदर्य आपको सुख दे सकता है अगर आप शबरी हैं। शूर्पणखा भांति अपने सौंदर्य के केंद्र पर अधिकार की चेष्टा अपने दुःख को आमंत्रण देना है।

‌सौंदर्य आपके मन जनित है, इसे विश्व की वास्तविकता न समझिए। वरना वास्तविकता का पिघला लावा सौंदर्य के कोमल तंतुओं को भस्मीभूत कर डालता है।

Wednesday, January 9, 2019

गरीब रथ जैसे शब्द ना बनाइये

साब। अगर बिरियानी है तो वेज बिरियानी कह कर वेज और बिरियानी दोनों का मज़ाक मत बनाइये। रथ है तो सिर्फ रथ कहिये , गरीब रथ जैसे शब्द ना बनाइये।  अगर कोई भाई साब लेफ्टिस्ट हैं तो फिर लेफ्टिस्ट शब्द को लिबरल प्रत्यय का जामा न पहनाइए। आतंकवाद को आतंकवाद ही रहने दीजिए, साथ में अच्छा और बुरा शब्द न लगाइये। रामभक्ति को भक्ति ही रहने दीजिये , उसके साथ दक्षिणपंथ का विशेषण न लगाइये। आप पत्रकार हैं तो पत्रकार ही रहिये, उसके साथ तटस्थ शब्द लगा अपनी सीरत ना छुपाइये । सदियों से जो सनातनी हिन्दू रहा है उसको सेकुलर हिन्दू ना बनाइये।

बातें तो बहुत हैं लेकिन एक बात और।

गरीब है तो गरीब ही कहिये ,उसे सवर्ण  गरीब और अगड़ा गरीब कह कर जख़्मों को लवण का लेप ना लगाइये।