आज़ादी की लड़ाई में चरखा का क्या महत्व था? बंदूक से आज़ादी दुनिया में कई देशों ने पाई, लेकिन गांधी जी के दिमाग में यह चरखा कहां से आया। क्या चरखा सिर्फ इस चीज का प्रतीक था कि भारतीयों की निर्भरता इंग्लैंड के मिलों में बने विदेशी कपड़ों पर कम हो? क्या चरखा का महत्व सिर्फ आर्थिक रूप से था या इसके कुछ और मायने भी थे? चरखा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक चिह्न कैसे बना? क्यों गांधीजी ने चरखे पर इतना बल दिया?
वर्ष 1920, अगस्त माह। कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में अपना पहला राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग आंदोलन शुरू करने के लिए जा रही थी।रंगमंच पर खेले जा रहे किसी नाटकीयता पूर्ण दृश्य की तरह एक अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया। 1 अगस्त 1920 वो तारीख थी जब देश गांधी जी के नेतृत्व में अपने पहले राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत करने वाला था। गांधी जी के देश लौटे करीब पांच साल हो गए थे और कांग्रेस की संस्था पर उनका प्रभाव सबसे ज्यादा हो चुका था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना को तीन दशक से ज्यादा हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का प्रभाव अब भी शहरी क्षेत्र के पढ़े लिखे वर्ग तक ही सीमित था। यद्यपि स्थापना से गांधी युग की शुरुआत तक कांग्रेस को दादा भाई नौरोजी, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, तिलक, एनी बेसेंट जैसे नेताओं का नेतृत्व मिला था लेकिन कांग्रेस अब तक कोई जन आंदोलन खड़ा करने में असमर्थ ही रही थी। गांधी जी के आने से पहले तक नरमपंथ का चरण 1907 तक समाप्त हो चुका था। अंदरूनी कलह के कारण सूरत अधिवेशन में कांग्रेस विभाजित होकर एक निष्प्राय संस्था बन चुकी थी। गरमपंथ के प्रमुख नेता तिलक काला पानी की सजा काटने के लिए अंडमान भेजा जा चुके थे। बीच में क्रांतिकारी आंदोलन जैसे लाला हरदयाल की गदर पार्टी भी अपने भरपूर प्रयासों के बावजूद सफल ना हो सके थे।
इस प्रकार गांधी जी ने जब स्वाधीनता आंदोलन की बागडोर संभाली, भारतीय स्वाधीनता आंदोलन नरमपंथ, गरमपन्थ और क्रांतिकारी तीनों प्रकार के प्रयोग करके असफल हो चुका था। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौट कर पूरे भारत का भ्रमण किया और भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की असफलता का कारण उन्हें जल्द ही समझ आ गया।
1920 से पहले जो आंदोलन चल रहा था, उसमें किसान शामिल नहीं थे, मजदूर शामिल नहीं थे, कांग्रेस उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं कर रही थी। मुस्लिम लीग का गठन हो चुका था जो मुसलमानों का प्रतिनिधत्व करने का दावा कर रही थी। मतलब कांग्रेस एक किसान विहीन, श्रमिक विहीन, और कतिपय मुस्लिम समाज से रहित अपना आंदोलन चला रही थी। सन 1917 में गांधी जी चंपारण जाकर किसानों को तथा जल्द ही अहमदाबाद में मिल मजदूरों के संघर्ष को अपना साथ देकर किसानों और मजदूरों को जन आंदोलन में जोड़ने का प्रयास कर चुके थे। खिलाफत को साथ लेकर वो मुस्लिमों को भी राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाना चाहते थे।
लेकिन भारत का एक वर्ग था जो इन सब से बड़ा था और कांग्रेस की पहुंच से अब भी सबसे दूर था। इस वर्ग को आंदोलन से जोड़ना सबसे कठिन भी था। क्योंकि इस वर्ग के लिए परदा और घर की चहारदीवारी को पार करना ही कठिन था तो सड़कों में आकर आंदोलनों में हिस्सा लेने के बात तो असंभव ही थी। गांधी जी के मन में यह स्पष्ट था कि समाज के हर वर्ग, खास कर इस वर्ग का सहयोग मिले बिना स्वाधीनता का कोई भी स्वप्न एक दिवास्वप्न ही था। यह वर्ग था महिलाओं का। और उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे महिलाओं को आंदोलन का हिस्सा बनाया जाय।
महिलाओं को आंदोलन से जोड़ने का पहला प्रयास हुआ तिलक स्वराज फंड से रूप में। लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद उनके नाम पर तिलक स्वराज फंड की स्थापना हुई। गांधी जी ने देश की महिलाओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोग करने के लिए वो आर्थिक दान तिलक स्वराज फंड में दें। पूरे देश से महिलाओं ने अपने गहने और मंगल सूत्र तक दान देकर एक करोड़ रुपए की राशि फंड में तय समय से पहले ही जमा कर ली। इसके बाद महिलाओं ने अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ महसूस किया। उनको यह विश्वास दिलाने के लिए
कि स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए महिलाओं का घर से निकालना आवश्यक नहीं बल्कि बैठे ही वे राष्ट्र सेवा कर सकती हैं। इस काम में चरखे ने बड़ी भूमिका निभाई। महिलाएं घर पर बैठ ही चरखे के माध्यम से अपना सहयोग आंदोलन को देने में सफल हुई। तिलक स्वराज फंड का एक बड़ा हिस्सा पूरे देश में चरखा वितरण के लिए प्रयोग हुआ और इसी चरखे के कारण देश के आधे हिस्से का राष्ट्रीय यज्ञ में सम्मिलित होना संभव हुआ।
चरखा महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना, स्वाधीनता आंदोलन के व्यापकीकरण का जरिया बना, महिलाओं के आत्मविश्वास का साधन बना और इंग्लैंड की कपड़ा मिलों पर देश की नारे शक्ति का सबसे शक्तिशाली वार साबित हुआ। चरखा और उससे निकलने वाले कच्चे सूत के धागों ने देश को उस एकता सूत्र में बांधा जिसने गुलामी की मजबूत बेड़ियों तक को तोड़ने में मदद की।
गांधी जी के विचारों को गहराई से समझने के बाद ही लोग यह समझ पाते हैं कि चरखा विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार कैसे बना।
गांधी जयंती की शुभकामनाएं और बापू को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन।