Tuesday, July 20, 2021

àapne ji ghabrana nahin hai..

It is true that Imran Khan's phone was hacked..Here is some selected  transcripts of his recorded phone calls.

Thode paise de dein janab.. Aapke purane paise aapko inshaallah wapas mil jayenge.. aapne ghabrana nahin hai.. hello .. hello.. lagta hai phone cut gaya..

Haan haan Bushra begham, maine kale kapde wali potli ko apni baanyi baaju se kas ke banadh liya hai.. laal kapde wali tabeez kidhar baandhni hai? daanyein kulhe per?? Theek hai.. baandh lunga.. bas aapne ghabrana nahin hai..

Aapko kitni baar kaha hai ki aap mujhe ghar per phone na kiya karein.. Bushra begham ne agar sun liya to shamat aa jayegi.. Haan ji.. yakeen karein, chauthi wali aap hi banengi,. Yakeen manein... aapne ghabrana nahin hai..

Bajwa sahab, wohi to main kah raha hoon ki aapko ghabrana nahin hai.. aapko ghabrana ke liye army chief rakha hai.. achche army wale darte nahin hain.. jee bilkul na ghabraayein.. inshaallah.. aapko nayi technology wale rocket chahiye?? Aisa karein aap hamare in science-daan minister Fawad Chaudhary se baat kar lein.. jee aapne ghabrana nahin hai..

Bushra begham.. amreeka walon ne paise bhej diye hain.. aapke liye uncut ruby ka necklace pakka.. nahin ji, main amreeka walon se hi baat kar raha tha.. aur bhala kisse baat karunga..  isiliye phone busy tha.. yakeen karein.. aap to baat baat per ghabra jaati hain.. aap  teesri nahin hain.. aap aakhiri hain.. bas aapne ghabrana nahin hai..

https://youtu.be/_DRi1rzdz_E

my guilty pleasure movies

I am totally biased towards these movies. They are not considered great movies or very popular or very classy movies as per critics or people at large. But I always enjoy watching these ones regardless of what others have to say about them. Call them my guilty pleasure list.

1. Aks : Debut by Rakesh Omprakash Mehra. Starring Big B, Manoj Vajpayee, Raveena Tandon, Nandita Das, Vijay Raj . Apart from this heavy starcast, it's music is a big plus.. Songs like Banda yeh bindaas hai, Rabba, Yeh raat aur aaja gufaon mein aa. Penned by Gulzar and music by Anu Malik. My first dark stylish movie. Yes, it's a literary dark movie as 70%of film has been shot in dark.

2. Haseena Maan Jayegi: Film by David Dhawan starring Govinda, Karishma Kapoor, Sanjay Dutt, Pooja Batra, Kader Khan and Satish Kaushik. What can I say about the movie except Govinda is at his charm offensive at its peak ably supported by Baba, and kader khan. Won't say much if you haven't seen this one. Bas ek baat kahunga.. Ek baar dekhiye to sahi..
3.Kasoor : a film of Vikram bhatt starring Amazingly beautiful and sensuous Lisa Ray ( May be my teenager harmones are still there somewhere which made me write that). Another reason may be Aftab Shivdasani is called Shekhar in this film and he has Lisa Ray as her lawyer, lover and mistress with whom you can sing songs like Dekha jo tumko yeh dil ko kya hua hai, zindagi ban gaye to hum and kal raat ho gayi. What else can you possibly want in life than what Aftab has got in the movie? 
4. Gunda : What has not been said about this one which I can say. Our own " Plan 9 from outer space" starring Mithun Da. You are living under a rock if you have not heard " Mera naam hai Bulla" dialogue and don't know names like Ibu harela, kafan chor neta, kala shetty, lucky chikna, chutia, inspector kale, lambu aata and Bachu bigona. One small trivia about this poetic (😂) film that while generally movie fans remember some scene, some dialogues or some songs, Gunda fans remember full movie. There are dedicated fan clubs for this one which tells me that I am not alone who love Gunda. 
Let me know your list.. I will watch them and append my list if needed. Only criteria is that movie shouldn't be critically acclaimed and should been as termed as trash but you like them. In hindi as we say.. ki Dil aaya gadhi per to pari kya cheez hai..

Thursday, July 1, 2021

ढिशुम ढिशुम या अंतर्द्वंद्व

कुत्ते! , मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा।नायक रुपहले परदे पर चिल्लाता है। दर्शक दीर्घा में बैठी भीड़ रोमांचित हो उठती है। पटकथा में नायक अपने अवास्तविक शौर्य और अतुलनीय शारीरिक बल का प्रदर्शन कर खलनायक का अंत कर देता है और कथा का सुखांत अंत होता है। सुखांत अंत से अर्थ है कि नायक नायिका विवाह बंधन में बंध जाते हैं। और दर्शक प्रसन्नचित अपने घरों को लौट आते हैं।


परदे पर दिखाया गया ऐसा कथानक सामान्यतः सुलभ है लेकिन वास्तविक जीवन में यह सुलभ नहीं है। वास्तविक जीवन में नायक और खलनायक के बीच की रेखा इतनी सुस्पष्ट नहीं होती। नायक और खलनायक अलग अलग चरित्र नहीं होते, बल्कि एक ही व्यक्ति के चरित्र के दो पहलू होते हैं। हां किसी में नायकत्व का तत्व ज्यादा हो सकता है, कहीं खल तत्व हावी हो सकता है। लेकिन ऐसा कभी नहीं होता कि किसी चरित्र में नायकत्व बिल्कुल ही गायब हो गया हो।


'कुत्ते! मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा' जैसी वैचारिक सुस्पष्टता भी वास्तविक जीवन में नहीं दिखती। वास्तविक जीवन में नायक हो या खल पात्र , एक दुविधा, संशा और द्वंद्व से ग्रसित रहता है। क्या खलनायक को कुत्ता कहना उचित है? क्या मुझे उसको दंड देने का मौलिक और नैतिक अधिकार प्राप्त है? खून पीने की धमकी देना क्या आज के आधुनिक युगीन संदर्भों में उचित है? क्या खलनायक का अपराध इतना गंभीर है कि उसको इतना कठोर दण्ड दिया जाए। यह ऐसे कुछ प्रश्न हैं जो दुविधा और द्वंद्व की स्थिति में वास्तविक जीवन का हर पात्र किसी न किसी हद तक जरूर जूझता है।


वास्तविक जीवन में जब चरित्र अच्छे या बुरे नहीं, बल्कि अच्छे और बुरे होते हैं, तो वास्तविक साहित्य में भी अच्छे और बुरे के बीच में एक सुस्पष्ट रेखा खींचना असंभव ही है। इसकी एक झलक देखने को मिली सत्यजीत रे की लघु कथाओं पर आधारित वेब सीरीज की चार कहानियों में। हर कहानी में हर मुख्य पात्र खल-नायक शब्द के बीच वाली डैश पर खड़ा दिखता है। हंगामा है क्यों बरपा वाली कहानी में मुसाफिर अली और जेंगा पहलवान दोनो सफेद और काले चरित्र की जगह ग्रे चरित्र के हैं। बहुरूपिया में इंद्रो भी उत्पीड़क और उत्पीड़ित दोनों श्रेणी में शामिल है। इप्सीत नायर और मैगी दोनो अपनी जगह सही लगते हैं और दोनो के पापों का थैला भी एक समान भारी है। ऐसा ही कुछ वासन बाला की कहानी स्पॉटलाइट में है। एक कहानी में चरित्रों का मानसिक द्वंद्व अपने चरम पर है। विक अरोड़ा और दीदी एक दूसरे से सर्वथा अलग अलग दिखने के बावजूद अंत में एक तादात्म्य में दिखते हैं।


साहित्य अगर समाज का दर्पण है और वास्तविक साहित्य कहलाने का अधिकार भी उसी को है जहां  वास्तविक जीवन की दुविधा परिलक्षित होती है ना कि कुत्ते और खून जैसे संवाद होते हैं। यही कारण है कि सत्यजीत रे सार्वकालिक महानों में गिने जाते हैं। वास्तविक जीवन पर आधारित कहानियों और वास्तविक चरित्रों पर आधारित नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज रे मिर्जापुर वाली भीड़ से एक अलग सुकून देती है। बाहरी ढिशुम ढिशुम का अंतर्द्वंद्व से कोई मुकाबला नहीं। हां यह अलग बात है कि आप ढिशुम ढिशुम को ही बेहतर बताने की जिद पर अड़े रहते हैं या रूह-सफा के हमाम में आकर वास्तविकता से रूबरू होने का माद्दा रखते हैं।