Thursday, July 30, 2020

मुंशी जी के कुछ अनसुने किस्से

गणित उनके लिए हमेशा गौरीशंकर की चोटी थी। उसपर कभी चढ़ ना सके। जैसे तैसे दूसरे दर्जे में मैट्रिक पास किया। आगे की पढ़ाई के लिए वजीफा ना मिल सका और अपने पैसे खर्च कर हिन्दू कॉलेज में दाखिला लेना संभव ना था।

आगे 1905 में ट्रेनिंग कॉलेज में पढ़ाने की डिग्री ली तो भी डिग्री पर लिख दिया गया not qualified to teach mathematics. पैरवी के आधार पर ही शिक्षक और बाद में निरीक्षक बने। लेकिन स्थानांतरण के लिए दिए गए आवेदन की सजा के रूप में बस्ती जिले में भेज दिए गए। स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो बस्ती में ही सहायक शिक्षक बने।

प्रेस खोला तो वहां भी प्रेस के रूप में सुरसा ही मिली। अपना सर्वस्व झोंक देने के बाद भी प्रेस उनका खून पीकर ही चलती रही। फिल्मी दुनिया में किस्मत आजमा यी लेकिन वहां भी टिक ना सके।

अनाकर्षक सा व्यक्तित्व था। एक पत्रमित्र उनसे पहली मुलाकात का वर्णन कुछ इस प्रकार करते हैं। जीने के ऊपर झांकने पर जो कुछ ऊपर दिखा उससे मुझे धक्का सा लगा। इतनी दूर से इतनी आशा बांध कर क्या इन्हीं मूर्ति के दर्शन करने आया हूं । एक बार तो जी में आया कि मन में बसी रमणीक छवि को बनाएं  रखूं और यहीं से लौट जाऊं। यह सामने खड़ा व्यक्ति साधारण, इतना स्वल्प इतना देहाती मालूम हुआ कि...

आर्थिक रूप से हमेशा विपन्न यह सरस्वती पुत्र फिर भी कुछ ऐसा लिख गया कि कहते हैं यदि  1910 से लेकर 1936 का इतिहास यदि विलुप्त हो जाय तो इनके साहित्य को पढ़कर पूरी तरह समझा जा सकता है। मैं बात कर रहा हूं कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की। और ऊपर उल्लेखित उनके पत्र मित्र हैं कथाकार जैनेन्द्र। जैनेन्द्र उनके चिर सखा बने रहे। अपनी मृत्यु शैय्या पर अपनी आखिरी रात को जब लोग प्रेमचंद से भगवान को याद करने को कहते हैं, तो प्रेमचंद कहते हैं " जैनेन्द्र, लोग ऐसे समय याद करते हैं ईश्वर, मुझे भी याद दिलाई जाती है, पर अभी तक मुझे ईश्वर को कष्ट देने के जरूरत नहीं मालूम नहीं हुई है।" अभाव और कष्ट को जीवन भर झेलता एक मनुष्य इतना आत्मबल रख सकता है, विश्वास के परे है।



उनके साहित्य पर टिप्पणी करने के योग्य अपने आप को नहीं पाता। उनका साहित्य पूरी तरह पढ़ लूं, समझ लूं इसके लिए भी शायद यह जीवन कम पड़े। उसके बाद भी शायद आलोचना ना कर सकूं। भाव विभोर हृदय और चमत्कृत मस्तिष्क आलोचक के गुण नहीं हो सकते। इसलिए उस चीज से परहेज़ ही करता हूं।

1936 में अपने आखिरी भाषण में प्रेमचंद कहते हैं " जिन्हें धन वैभव प्यारा है, साहित्य मंदिर में उनका स्थान नहीं है। यहां उन उपासकों की जरूरत है जिन्होंने सेवा को ही अपना जीवन की सार्थकता मान लिया हो। हम तो समाज का झंडा लेकर चलने वाले सिपाही हैं।

कलम के सिपाही युगपुरुष प्रेमचंद को उनके जन्मदिवस पर कोटिश अभिनंदन।
उनकी लेखनी का छोटा सा नमूना कहानी "बूढ़ी काकी" से, श्रद्धा सुमन के रूप में।

"बूढ़ी काकी ने सिर उठाया, न रोईं न बोलीं। चुपचाप रेंगती हुई अपनी कोठरी में चली गईं। आवाज़ ऐसी कठोर थी कि हृदय और मष्तिष्क की सम्पूर्ण शक्तियाँ, सम्पूर्ण विचार और सम्पूर्ण भार उसी ओर आकर्षित हो गए थे। नदी में जब कगार का कोई वृहद खंड कटकर गिरता है तो आस-पास का जल समूह चारों ओर से उसी स्थान को पूरा करने के लिए दौड़ता है।"

Tuesday, July 28, 2020

God's cruel prank that Dil Bechara is..

Dil Bechara is hard to watch. This would have been just another tearjerker , If Sushant Singh Rajput aka SSR was among us. Whole movie seems like a cruel prank nature played with us. As if nature was preparing us for the bad news before actually giving us the bad news. 

The instances are far too many to ignore which suggests that actually nature was working on this joke to unleash upon us in already terrible year of 2020.

 SSR stars in a movie in the movie which people watch after he dies.  During the entire movie, he seems to be the most lively and jovial character while he was the one nearest to the end.

 The movie is set up in Jamshedpur, which is also named Tata, which means bye.

 His name in the movie is Immanuel, which means ‘God is with us’. This name reminds you of constant irritating presence of God and his cruel prank throughout the movie like Kizie basu's oxygen pipe around her neck.

 Just like in movie SSR became victim of cancer that is nepotism and mafia culture. The cancer which took his life in installments , first they took away his leg in the movie and his projects in real life before taking his life eventually.

 SSR was a big fan of stars and had a deep passion for astronomy. It is just more than a coincidence that his last movie is based on the ‘Fault in our stars’ before he himself left for becoming a star.

Sometimes I feel that why should we bother so much about SSR. He may be just another lad who couldn't cope up with the cruel world and may be that what finished him. If he was that weak, may be his end was acceptable if not fair. But but but... If he was suffocated by a cabal, a gang , or a system, we all should rise against it.


Remember injustice anywhere is a threat to justice everywhere. If this system prevails, you will never get another talented outsider like Big B, another SRK or another Kangna who came from outside but ruled the tinsel town.



In Dil Bechara, SSR attends his own funeral. So, may be like Manny, SSR too had arranged his own funeral before he actually left us. But we will never know that. that’s the cruelest part of God's prank.

If a movie is meant to move you, Dil Bechara is the movie.. Kuch films banayi nahin jaati, ban jaati hai..

 


Thursday, July 23, 2020

हिमालय की नटखट नातिनों का खेल

अरे हम सब मदारीचक र चिकिये, हमरा पानी कि कर तै। मानक हिंदी में कहूं तो अरे हम लोग मदारी चक गांव के हैं, पानी हमारा क्या बिगाड़ लेगी? मेरे दादा हमेशा एक गांव का नाम लेते थे मदारी चक। काफी समृद्ध गांव हुआ करता था, नदी की धारा में समा गया। गांव मिट गया, गांव का नाम नहीं मिटा। बोस्टन में हों या दिल्ली के द्वारका में, उस गांव के लोग आज भी अपने आप को मदारी चक का ही बताते हैं।

बिहार में बाढ़ जीवन का हिस्सा नहीं है, वही हमारा जीवन है। हथेलियों की रेखाओं की तरह नदियां उत्तर बिहार में फैली हुई है। जैसे हाथ की लकीरें बदलती रहती है, बिहार में नदियां भी अपना मार्ग बदलती हैं। किसी नटखट चपल बालिकाओं के समूह की तरह जो गांव में लुका छिपी खेल रही हों। वे बालिकाएं अपनी लुका छिपी के खेल के दौरान कहीं भी छुप सकती हैं। पूरा गांव उनका है, सारे घर उनके लिए खेल और क्रीड़ा कौतुक का प्रांगण है। वह किसी घर में छिपे तो घर का गृहस्थ यह नहीं चिल्लाता कि मेरे घर में चोर घुस आए । बालिकाओं का घर में घुसना अतिक्रमण नहीं है, सारा गांव उनका है, गांव के सारे घर उनके हैं। एक प्रसंग है कि जब महाकवि विद्यापति ने जीवन के अंतिम क्षण में नदी में समाधि लेने की सोची। वृद्धावस्था के कारण वह नदी तक चल कर नहीं जा सकते थे, इसलिए उन्होंने नदी का आह्वान किया कि यदि मैंने साहित्य की कुछ भी सेवा की है तो नदी मुझे मेरे घर से ले कर जाए। कवि की पुकार सुनकर नदी कविवर विद्यापति के घर आई और उनको अपने साथ ले गई।

बिहार की समस्त भूमि नदियों की है। बिहार मानो उनका घर है जिसे बनाने की सारी सामग्री वह अपने ननिहाल नेपाल से अपने नाना हिमालय से मांग कर लाई है। और उन सबके नाना हिमालय उन उदार नाना जैसे हैं जो अपनी प्यारी नातिनों को उनकी जरूरत से ज्यादा उपहार( मिट्टी, बालू, पत्थर) देकर अपने दादा दादी के घर भेजते हैं। ऐसे में यह नटखट बालिकाओं का समूह थोड़ा शैतान और नकचढ़ी तो होगा ही। इनसे अनुशासन की उम्मीद ना केवल अव्याहरिक है बल्कि बालिकाओं पर अत्याचार सा है।



हमारे प्रखंड मनिहारी में आप मछली बाज़ार जाइए। मछुवारे कहेंगे आय लद्दी से ढेर मछली लानल छी। मतलब कि आज नदी से ढेर सारी मछली लाया हूं। आप पता करेंगे तो पता चलेगा कि उसने मछली किसी पोखर से पकड़ी है। फिर हमारे यहां पोखर को नदी क्यों कहते हैं? वो इसलिए कि उस पोखर का पानी नदियों ने भरा है वर्षा ने नहीं। मेरे गांव में हर घर के पीछे एक डोभा हुआ करता था। डोभा मतलब छोटा पोखर। अब सोचता हूं तो लगता है कि मेरे निरक्षर पूर्वज कितने समझदार थे। बाढ़ में आए पानी को रोकने और जमा करने के लिए गांव के बाहर लद्दी और गांव के अंदर डोभा की लड़ी बना रखी थी। यह बाढ़ से निपटने का उनका सुरक्षा कवच था। दादा एक बात और कहते थे कि बेटा हेलना जरूर सीखिहैं। मतलब बेटा तैरना जरूर सीखना। अब सारी कड़ियां मानो जुड़ती सी दिखती हैं कि वह पीढ़ी किस प्रकार प्रकृति के साथ एकसार और तन्मय थी। प्रकृति को स्वीकार कर उससे संघर्ष की जगह प्रकृति के साथ संसर्ग का प्रयास करती थी।

और हम शिक्षित वंशजों ने सारे डोभा भर घर बना लिए। सारे लद्दी को सुखा सुखा कर खेती करने लगे। किस काम की ऐसी शिक्षा जो आपको अपनी धरती को समझने में अक्षम बना दे। अगर मैं कहूं तो बिहार की बाढ़ पूरी तरह से मानव निर्मित समस्या है। नदी हमारे घर में नहीं घुसी, वह तो बस अठखेलिया कर रही है, हमने बस उसके खेल के मैदान की बीच अपने घर बना लिए। हम उनके साथ रहना भूल गए, उनको रास्ते से हटा कर उनको बांधो में बांध कर ढिठाई करने लगे। उसकी सजा तो हमें मिलनी ही थी।

जगजीत साब की एक नज़्म याद आ रही है, रेखाओं का खेल है मुकद्दर, रेखाओं से मात खा रहे हो। उत्तर बिहार की नदियां हमारी मुकद्दर की रेखाएं हैं, उनके साथ रहना सीखना होगा, जैसा हम अब तक करते आये हैं । फिर उनकी चपलता हमें परेशान नहीं करेंगी। बाढ़ की विभीषिका जैसे विशेषण हमारी कारस्तानी है, और कुछ नहीं।
अवसर मिला तो बाढ़ और नदियों के अर्थशास्त्र पक्ष में कभी विस्तार से लिखूंगा।

On Raghav's 4th Birthday

You never got our total undivided attention, Your elder brother was already there to share it with you..

Half of your toys are used, so are your clothes. Old and used..Your elder brother  always got brand new toys and clothes..

Even parents you got, were older as compared to what your elder sibling got ..

Half of the time we call you by your elder sibling name, while we never call your elder brother by your name.

Even if you do something cute, we often compare that to your elder brother thinking how he used to do it..


Even your mother is called as Ojas's mother by elderly ladies in family when she is equally your mother. 

Yet unlike our attention for you, we always get your total undivided attention..

Your love for us is total new , totally unique..

You being the youngest, make us feel even younger..

Even times when we call you by your brother's name, your love towards us remains unchanged.

Like all younger siblings of world, you are happy being son to 'Your elder sibling's mother'.

You may feel all this injustice being done to you, but remember, your elder one never had an elder brother..

Unlike you, he never had company of a person he could call bhaiya.

Unlike you he was a guinea pig in hands of a novice parents, you got a much experienced calmer set of parents.. He handled all the rough edges of an inexperienced parenthood and made it smooth for you..

You complete us like a second eye, a second hand, a second lung.

 You are like our second life god graced us with. 

Dear Raghav, It is impossible to even imagine a second of our lives without you. May be thats why we call you our second son. 

Happy fourth Birthday Raghav. Love you to the second moon situated far in galaxies and back.

Saturday, July 11, 2020

चीन र साथ गोतियौरी झगड़ा


चीन दुश्मन नय चिकै, चीन होलौं कजिया करै वाला गोतिया। वहा गोतिया जे बेटी र बिहा भड़काबै , नयका जमाय क तोराह शिकायत करी का खुश हो जाय। बाराती में जा करी क जन्वासा में तकिया आरो तोशक पर तरकारी र झोर गिरा करी क हो हल्ला करै वाला गोतिया।

खाली बीहा शादी में नय, बाकी दिन भी जेकरs दिमाग म खाली खुराफात हूवा, वहा चि कै चीन। खेत पथार म जा करी क भोरे भोर कोदारी स आड़ काटी का अपना हिस्सा बढ़ाबै म जेकरा स्वर्ग जैनह सुख मिलै, बुझी ला चीन वहा गोतिया । आड़ काट तs पकड़ाबै पर आरो झगड़ा कर थौंह कि ए ज़मीन ता हमरे ची कै । फलां अमीन गड़बड़ कर क़ छैलई, फेरू सा नापी करवा के देखी ले। हम्मा ई बटवारा मानै वाला नाय छी, फेरु स पंचैती करवा ले। 


 
ऐन्हs गोतिया जैन्ह देश स निपटें म गोतियोरी पेंच सा काम करै ल पड़ तय । मार पीट करी का बदनामी सा जादे कुछु नय मिले वाला छै
। दू चार मैन्हा टोका चाली बंद , बेटा र बड्डे में ओकरा नाय बोला बा, सीधा लाइनपर आबी जै तोंह। बाकी दुनिया बदली जाय, तों गोतिया नय बदल स कै छ। एकरे बास्त ओकरा सा झगड़ा बढ़ा करी के कोय फैदा नय। आरो केकरो से पंचैयी करवा का आरो घटा, से बाहरी आदमी स त एक दम बची के रहना छै।

कैसनो चीकै अपने चीकै । ए बात मन म रहs, त सब चीज धीरे धीरे सब अपने आप ठीक हो जै तै। वहा आड़ काटे वाला गोतिया बाराती में सबसे आगे नागिन डांस कर थौंह , बस कनी टा धीरज रखै र काम छै।

 हिंदी चीनी गोतियौरी भाय भाय।।