स्वर्ग में आसीन देव और पुण्यात्माओं का जीवन कैसा होता होगा। जैसा कि हमारे ग्रंथों में वर्णित है अगर वही परिभाषा स्वर्ग की ली जाय तो स्वर्ग ने निवासी सुरा की सतत प्रवाही नदी के तीर पर बैठे कल्पतरु से प्रवाहित सुरभित हवा से बल खाते चिर यौवना अप्सराओं के केशराशि को बल कहते देखते होंगे। चारों ओर शांति, समृद्धि और सुख का साम्राज्य। कल की कोई चिंता नही, जीविका के प्रबंध की कोई आवश्यकता नहीं और जरा , क्षुधा और व्यथा का कोई अस्तित्व नहीं। इस सुखमय किन्तु एकरसता भरे जीवन को कोई कितनी देर जी सकता है। शायद स्वर्गीय वासियों की जीवन में क्लांति के सिवा कोई और रस न होगा। स्वर्ग के निवासी भी अपने जीवन से उदास होंगे। अगर स्वर्ग पूर्वजीवन की कोई स्मृति ना हो , जैसा कि कदाचित संभव है तो मानव स्वर्गारोहण के पश्चात भी क्लांति और विरक्ति का ही अनुभव करता होगा। देवगणों की बात ही क्या? उन्होंने तो और कुछ देखा ही नही । मर्त्य लोक और पाताल लोक की हृदयविदारक कथाएँ सुन सुनके साहस भी न होता होगा कि कभी पाताल लोक और मर्त्यलोक के स्वप्नदर्शन भी हों। अर्थात देवगणों का जीवन भी एकरसता का वह सरोवर है जिसमें उत्साह की लहर शायद की कभी दृष्टिगोचर होती हो।
इतनी लंबी भूमिका शायद एक ओर इंगित करती है कि चाहे कितना भी सुख हो कुछ समय पश्चात वो सामान्य और उसके पश्चात उबाऊ हो जाता है। स्वर्ग तक आपको सामान्य लगने लगता है और आपको झंकृत नहीं करता। शायद दुख का भी वही हाल है। अंग्रेजी फ़िल्म दी शॉशंक रिडेम्पशन में रेड का चरित्र शायद इसी प्रक्रिया को इंस्टीच्यूसनलाएजेसन कहता है। प्रातः काल में सुबह उठना, जलपान करना, भोजन से स्फूर्त दैनिक कार्यों का निष्पादन और उसके पश्चात निशा काल में थक कर निद्रा के आगोश में सो जाना कितना सामान्य से प्रतीत होता है। इतना सामान्य कि इस लोग कह उठते हैं सुबह उठना, दिन भर काम करना और रात में सो जाना , यह भी कोई जीवन है। वृद्धावस्था अथवा स्वास्थ्य हानि के बाद मनुष्य इसी सामान्य जीवन की पुनः प्राप्ति के लिये अपना सर्वस्व देने को क्षणभर में उत्सुक हो जाता है।
शायद इसलिए दुखद क्षणों और इतिहास के काले अध्याय के भी स्मारक बनाये जाते हैं।अंडमान की सेलुलर जेल को देख कर ही अपने सामान्य सी दिख रही स्वतंत्रता का अहसास होता है। देश में तीन स्तरों पर पांच वर्षों के अंतराल पर चुनाव होते हैं और परिणामों के अनुसार सत्ता का हस्तांतरण हो जाता है। अगर यह बात आपको सामान्य लगती है तो कदाचित आप दुनिया के अस्सी प्रतिशत देशों के राजनीतिक परिदृश्य से अवगत नहीं हैं। अपने पड़ोस में ही देख लें, अपना सामान्य आपको अतिविशिष्ट लगने लगेगा।
अच्छे समय की बुरी बात यह होती है कि वह अपने गले में तख्ती टांगे नहीं घूमता कि अभी अच्छा समय चल रहा है। अच्छा समय एक संदर्भ और परिपेक्ष्य की अवधारणा है। उस अवधारणा के बिना स्वर्ग जैसा समय भी एकरसता पूर्ण प्रतीत हो आपको क्लांत कर डालता है। बिहार के एक गांव से नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में निकल कर जब मैं पहली बार दिल्ली आया तो एक शब्द सुना 'लोड शेडिंग'। बसों में लोगों को बात करते सुना कि आजकल चार चार घंटे लोड शेडिंग हो रही है। पता चला कि लोग इस बात से परेशान हैं कि दिन भर में चार घंटे बिजली नहीं रहती। मैं विस्मित हो गया। लोग इस बात पर नाराज़ हैं कि सिर्फ बीस बिजली
रहती है और मेरे गाँव में दो घंटे भी बिजली नहीं रहती। फिर शहर आकर अब मेरा यह हाल है कि आधे घंटे भी बिजली चली जाए तो लोकतंत्र , समाजवाद, कल्याणकारी राज्य और मानवता सब से मेरा विश्वास उठने से लग जाता है। फिर मैं आँख बंद कर अपने मूल की तरफ लौटता हूँ और फिर से मानवीय विकास और देश की संभावनाएं मेरे सामने दीप्त हो प्रकाशपुंज हो जाती हैं।
अगर आप वर्तमान स्थितियों से क्षुब्ध हैं तो मूल्यांकन करें कि आप का क्षोभ का कारण वास्तविक परिस्थिति है या आपकी बढ़ी हुई आकांक्षाएं। अगर स्थितियां उत्तरोत्तर सुधारोन्मुख हैं तो आपका धैर्य वांछित है। जीवन में विकास की अपनी गति है जो मानवीय इच्छाओं की गति से सदैव मंथर है। इस सत्य को मान कर किया गया मूल्यांकन आपको न केवल सही निर्णय लेने में मदद करेगा बल्कि आप अपने योगदान से सतत सुधार की प्रक्रिया का हिस्सा बन पलायनवादी और नकारात्मक शक्तियों का सामना भी कर पाएंगे।