आपने कई बार पढ़ा होगा कि भगवान बुध्द को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे बैठे ज्ञान प्राप्त हुआ। मैने भी पढ़ा है लेकिन यह नहीं समझ पाया कि वास्तव में आखिर क्या हुआ होगा। क्या कोई दैवीय चमत्कार हुआ कि गौतम को किसी ने सारा ज्ञान हस्तांतरित कर दिया। या जैसा धार्मिक धारावाहिकों में दिखाया जाता है कि एक प्रकाश पुंज मस्तक के आस पास आ जाता है। जिस तरह धारावाहिक में दिखाया गया प्रकाश पुंज ज्ञान का एक काल्पनिक चित्रण भर है जिसका वास्तविक घटित घटनाओं से शायद कोई संबंध नही है। उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होना भी कदाचित किसी और प्रक्रिया का साहित्यिक चित्रण भर है। वास्तव में यह प्रक्रिया कुछ और रही होगी जिसे लोग ज्ञान प्राप्त होना कहते हैं।
बैरिस्टर मोहनदास गांधी अपने मुवक्किल दादा अब्दुल्ला के मुकदमे की पैरवी के लिए रेल से डर्बन से प्रिटोरिया जा रहे थे। मोहनदास ने बैरिस्टरी की पढ़ाई लंदन में की और वहां पूरी तरह अँग्रेजों की तरह रहे। सूट बूट पहन कर काठियावाड़ का यह युवक अपने लंदन प्रवास के दौरान अंग्रेजी संस्कृति में घुलने का प्रयास करता रहा। दूसरे शब्दों में कहें तो शायद सभ्य बनने की कोशिश करता रहा। यहां तक कि उसने पाश्चात्य नृत्य बॉल डांस को सीखने के लिए टयूशन तक ले ली थी। पढ़ाई पूरी कर मुम्बई में वकालत की पर कुछ खास चली नहीं। ऐसे ही एक दिन दादा अब्दुल्ला ने एक मुकदमे की पैरवी के लिए दक्षिण अफ्रीका बुला लिया तो युवा मोहन चल पड़ा नई संभावनाओं की तलाश में दक्षिण अफ्रीका। और बिल्कुल अंग्रेजों की तरह पहली श्रेणी का टिकट लेकर डर्बन से प्रिटोरिया जाने वाली रेल गाड़ी में बैठ गया। फिर क्या हुआ? रेल के टिकट निरीक्षक ने उसे बताया कि पहले श्रेणी में बैठने के लिए पहली श्रेणी का टिकट पर्याप्त नहीं है उसके लिए चमड़ी का रंग भी गोरा होंना चाहिये। जिन अंग्रेजों ने उसे बैरिस्टरी की पढ़ाई के दौरान न्याय, कानून और अधिकारों के बारे में सिखाया था वही अंग्रेज अब यह बता रहे थे कि न्याय और अधिकार की बातें सार्वभौमिक नहीं वरन चमड़े के रंग का एक फलन हैं। विनम्रता पूर्वक अनुनय और तर्क करना काम न आया और अंग्रेज़ी कपड़े पहने अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त और अंग्रेज़ बनने की सुप्त इच्छा रखने वाले मोहन दास को सामान सहित पेटरमारितज़्बेर्ग स्टेशन पर प्लेटफार्म पर फेंक दिया गया। मोहन दास ने अपना सामान उठाने की भी परवाह नही की और रात भर वहीं पड़े सोचते रहे। मोहन दास ने महात्मा बनने की ओर पहला कदम उसी स्टेशन पर उठाया।
मोहन दास को उस दिन क्या नया पता चला। क्या वो अंग्रेजी सरकार के दमन से पूरी तरह नावाक़िफ़ थे? संभव नहीं लगता। क्या उस रात उन्होंने पहली बार रंगभेद देखा था? कदाचित नही। फिर क्या हुआ? हुआ सिर्फ यह कि मोहन दास को उस दिन उसका जीवन लक्ष्य मिल गया। उसने निर्णय लिया कि आगे का जीवन इस अन्याय के विरुद्ध लड़ते हुए बीतेगा। ऐसा ही कुछ गौतम के साथ हुआ होगा। जीवन, मृत्यु और वृद्धावस्था के रहस्य उनको पहले ही पता रहे होंगे। पर उस दिन बोधिवृक्ष के नीचे उन्होंने यह निर्णय लिया होगा कि शेष जीवन में क्या करना है। एक राजकुमार जो 29 साल तक की आयु तक भोगविलास में डूबा रहा , एक रात अपनी पत्नी और नवजात को छोड़ निकल जाता है। भूखे रह कर मरणासन्न हो जाता है, फिर एक दिन सुजाता की खीर खाकर मध्य मार्ग पर चलने का निर्णय लेता है। शायद जीवन लक्ष्य निर्धारित होने को ही ज्ञान प्राप्त कहा गया है। मुझे बुद्ध का नहीं पता पर अगर कहूँ कि उस रात ट्रैन से फेंके जाने पर मोहन दास को जरूर ज्ञान प्राप्त हुआ तो शायद अतिश्योक्ति न होगी।
अच्छी बात यह है कि ज्ञान प्राप्त होने और करने की कोई उम्र नहीं है। आपका इतिहास आपके भविष्य का द्योतक कतई नहीं है। अगर ऐसा होता तो एक भोगी युवराज भगवान बुद्ध ना बनता और न ही अंग्रेजी नृत्य सीखने का इच्छुक एक युवक पूरे अंग्रेजी साम्राज्य को नचा डालता। बस वह एक पल आने की देर है जब आपका जीवन चरित बदल जाता है। जब आपको ज्ञान प्राप्त होता है। सावधान और सतर्क रहें क्योंकि यह मोड़ किसी भी रूप में आ सकता है। विष्णुगुप्त चाणक्य को यह धनानंद के अपमान के रूप में मिला तो न्यूटन को सर पर गिरे एक सेव के रूप में। किसी के लिए सुजाता की खीर काम कर गयी तो किसी के लिए ट्रेन से फेंका जाना। सबको जीवन तो मिलता है जीवन लक्ष्य बिरले ही प्राप्त कर पाते हैं । ईश्वर से प्रार्थना करें कि आपको जीवन और जीवन लक्ष्य दोनो प्राप्त हों।
बापू के जन्मदिवस की शुभकामनाएं।।
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