मणि अगर गजराज के पास हो तो मुक्ता मणि बन जाती है। वही मणि सम्राट के मुकुट में सज कर उसके चक्रवर्ती होने के प्रताप का उदघोष करती है। यही मणि अगर सर्प के पास पहुंच जाय तो सांप इच्छाधारी बन पूरे समाज के लिए विपत्ति उत्पन्न कर देता है। एक ही शास्त्रों का ज्ञान अगर विदुर जैसे सज्जन के पास हो तो एक नीति निपुण मंत्री बनता है, और यही शास्त्रों का ज्ञान एक असुर को रावण बना डालता है। धनुर्विद्या सत्य के लिए लड़ने वाला पार्थ भी बनाती है और कोख में पल रहे बच्चे तक की हत्या करने वाला अश्वत्थामा भी बना डालती है।
सिर्फ शक्ति से शक्ति की उपयोगिता नहीं चलता , शक्ति धारण करने वाला ही शक्ति की उपयोगिता का निर्धारण करता है। वर्षा की वही बूंद जो सीप में पड़ कर मोती बन जाती है जो नाली में गिरकर अपशिष्ट हो जाती है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि वस्तु, ज्ञान, या शक्ति का मूल्य और प्रभाव उसके धारक के दृष्टिकोण, चरित्र, और उपयोग की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। हर शक्ति एक साधन मात्र है, जो इसे धारण करने वाले की मंशा के अनुसार या तो समाज के लिए वरदान बन सकती है या अभिशाप।
जीवन का यही दर्शन हमें सिखाता है कि हमें अपनी योग्यता और संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए, ताकि वे मानवता के कल्याण और विकास के लिए उपयोगी सिद्ध हों। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने विचारों और कर्मों को सही दिशा दें और अपनी शक्ति का ऐसा उपयोग करें, जो हमें और हमारे समाज को उच्च आदर्शों की ओर अग्रसर करे।
जैसा कि संत कबीर कहते हैं:
"साधन के फल देखिए, साधन जाए न वर्त।
जो साधन संत जानें, सब फल साधन समर्प।"
अतः शक्ति का सही उपयोग ही जीवन का सार है, और यही मानवता के लिए सच्चा उपहार है।